कविता :-(भारत की नारी ) सुन भारत की नारी तू मत बनना बेचारी। हार मान ना लेना तू तेरी जंग अभी है जारी। फूल नहीं बनना है त…
साहित्य सरोज साप्ताहिक आयोजन क्रम -2 शीर्षक...गुलाब कठिन बेहद जीवन डगर चल पाना नहीं कोई सरल वेदना का पीना पड़े जहर वक्…
(२)नि: शब्द वह कौन सी जगह ऐसी है जहां इंसान हो जाता स्तब्ध। ढूंढता मतलब कुछ शब्दों के पर रह जाता है नि: शब्द ।। यह जात…
आंख खुली अवनि तल पावा, दिव्य ज्योति इक दर्शन पावा। अबोध अज्ञानी बन कर हम, रमते दुनिया कुशल क्षेम पावा।। शनैः शनैः दृग प…
शरद ऋतु जा रहा, ऋतुराज बसंत आ रहा, पतझड़ के इस मौसम में, बसंत ऋतु खिलखिला रहा। सरसों के फूल खिले, चकवा- …
फिर से आई ऋतुराज बसंत, धरती पर लाई नया वसंत। पीली सरसों खेतों में लहराए, कोयल मीठे गीत सुनाए। फूलों की गंध हवा…
बसंत पीत-पीत खेत खलिहान पीत वर्ण में शोभित उद्यान पीत चुनर वसुधा लहराये पीत वर्ण उसका परिधान । कलियों पर भौंरे मंडराए प…
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