16 दिसम्बर

पूरी लिखूँ किताब मगर इबारत 
मिट-मिट जाती है,
देख दानवी क्रूरता कलम मेरी 
थर्राती है।


खोफ दिलों में छाया था,जब 
16 दिसम्बर आया था,
माँ का कलेजा फटता था
रुदन न रोके रुकता था।


दर्द तुम्हारे सीने का,आंखों 
तक भी आया था,
आंसू की लड़ियों ने तब,अपना 
जाल बिछाया था।



हैवानियत की कहानी,दिल्ली 
हमें  सुनाती है,
देख दानवी क्रूरता,कलम मेरी 
थर्राती है।


सिसक पड़े ओठों पर,दीवारें 
भी चित्कारी थीं,
पिघल पड़े थे शीशे भी,जब
मां ने दहाड़ें मारी थी।


हैवानियत की कहानी,दिल्ली 
हमें सुनाती है,
देख दानवी क्रूरता,कलम मेरी 
थर्राती है।


बे मौत मरी थी माँ,जब तुमने 
अंतिम सिसकी मारी थी,
खामोश जुबां देख तुम्हारी,उसने डरकर आँखे फाड़ी थीं।


रोते-रोते हाथों से तिरे बालों 
की लट सँवारी थी,
अरमानों से पाली बेटी,कर दी 
आग हवाले थी।


हैवानियत की कहानी,दिल्ली हमें सुनाती है,
देख दानवी क्रूरता कलम मेरी 
थर्राती है।



किसी के बेटों को बद्दुआ,देकर 
रोई विचारी थी,
हैवानों को पैदा करने वाली,माँ 
की कोख धिक्कारी थी।


एक सिंहनी सी लड़ीं तुम, और 
लड़ते लड़ते  सोच रहीं थी,
जीत नहीं तो,मौत मिलेगी, पर
हैवानों से जूझ रहीं थी।


हैवानियत की कहानी,दिल्ली 
हमें सुनाती है,
देख दानवी क्रूरता,कलम मेरी 
थर्राती है।


खामोश किया खुद को तुमने
समर सभी को सीखा दिया,
आत्मसम्मान की चेतना का
संचार सभी में भर दिया।।


चार मुखी उन राक्षसों को मौत 
का भय दिखा दिया,
फाँसी के फंदे नीचे हमनें आज 
उनको खड़ा किया।


हैवानियत की कहानी,दिल्ली 
हमें सुनाती है,
देख दानवी क्रूरता कलम मेरी 
थर्राती है।
रेखा दुबे
विदिशा मध्यप्रदेश


 



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ