रचनाकार संख्या -16
स्वर्ग से उतार देवनदी को
थे देवगण अत्यंत प्रसन्न।
विचार था उनका कि
इससे नरकलोक भरेगा कम।
पापो का उद्भव होगा कम
विकार मुक्त रहेगा मानव मन।
चलता रहा नित समय चक्र
मनु हुआ पवित्रता से खिन्न।
पाप करता निष्ठुरता से
आत्मा से हुए हीन।
गंगा धोती रही सर्व पाप
मुनाफा देख पापी मन
खेलने लगा भयावह खेल।
कारखानो का अवशेष
काल अवशिष्ट विसर्जन
स्नान और मल अवसाद
कीच सी भागीरथी का हाल।
दूषित गंगा करे पुकार
मानव करे तनिक विचार
निर्मल करे गंगा जल धारा
हेमलता गोलछा
गुवाहाटी आसाम।
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