भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी गंगा , देश की प्राकृतिक संपदा ही नहीं, जन जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण गंगा । 100 फीट (31 मीटर) की अधिकतम गहराई वाली यह नदी भारत में पवित्र मानी जाती है तथा इसकी उपासना माँ और देवी के रूप में की जाती है।
- वैज्ञानिक के अनुसार इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। गंगा की इस असीमित शुद्धीकरण क्षमता और सामाजिक श्रद्धा के बावजूद इसका प्रदूषण रोका नहीं जा सका है।नवंबर, 2008 में भारत सरकार द्वारा इसे भारत की राष्ट्रीय नदी तथा इलाहाबाद और हल्दिया के बीच (1600 किलोमीटर) गंगा नदी जलमार्ग- को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया।- भारत सरकार के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती गंगा में हर तरफ से आ रहा मल-मूत्र का कचरा, औद्योगिक कचरा, बूचडखानों का कचरा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 1984 में गंगा बेसिन पर सर्वे किया जिसमे गंगा के प्रदूषण पर गंभीर चिंता व्यक्त की जिसके आधार पर पहला गंगा एक्शन प्लान को 1985 में चालू हुआ । जो 901 करोड़ रुपये लगने के साथ 15 वर्ष मे असफलताओ के बाद मार्च 2000 मे बंद कर दिया गया । फरवरी 2009 में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन अथॉरिटी (एनआरजीबीए) समिति का गठन किया गया। इसमें गंगा के साथ यमुना, गोमती, दामोदर व महानंदा को भी शामिल किया गया। 2011 में इस कार्य के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन का गठन एक पंजीकृत सोसायटी के रूप में किया गया। मोदी सरकार ने 2014 में नमामि गंगे कार्यक्रम शुरू किया। 1995 से 2014 तक की गंगा सफाई की इन योजनाओं पर 4,168 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। इसमें छोटी-बड़ी 927 योजनाओं पर काम करते हुए 2,618 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) क्षमता हासिल की गई।
- गंगा नदी विश्व भर में अपनी शुद्धीकरण क्षमता के कारण जानी तो जाती ही साथ ही इसकी मान्यता का वैज्ञानिक आधार भी है। नदी के जल में प्राणवायु (ऑक्सीजन) की मात्रा को बनाए रखने की असाधारण क्षमता है। लेकिन गंगा के तट पर घने बसे औद्योगिक नगरों के नालों की गंदगी सीधे गंगा नदी में मिलने से गंगा का प्रदूषण को दिन प्रतिदिन बढाता जा रहा है जो ,सालों से भारत सरकार और जनता की चिंता को बढा रहा है। औद्योगिक कचरे के साथ-साथ प्लास्टिक कचरे के कारण भी गंगा को प्रदूषित कर रहे है वैज्ञानिक जांच रिपोर्ट के अनुसार गंगा का बायोलाजिकल ऑक्सीजन का स्तर 3 डिग्री (सामान्य) से बढ़कर 6 डिग्री हो गया है। गंगा में 2 करोड़ 90 लाख लीटर प्रदूषित कचरा प्रतिदिन गिर रहा है। विश्व बैंक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर-प्रदेश की 12 प्रतिशत बीमारियों की वजह प्रदूषित गंगा जल है। यह घोर चिंता का विषय है कि गंगा-जल न स्नान के योग्य रहा, न पीने के योग्य रहा और न ही सिंचाई के योग्य। गंगा के पराभव का अर्थ होगा, हमारी समूची सभ्यता का अन्त। शहर की गंदगी को साफ करने के लिए संयंत्रों को लगाया जा रहा है और उद्योगों के कचरों को इसमें गिरने से रोकने के लिए कानून बने हैं। इसी क्रम में गंगा को राष्ट्रीय धरोहर भी घोषित कर दिया गया है और गंगा एक्शन प्लान व राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना लागू की गई हैं। हालांकि इसकी सफलता पर प्रश्नचिह्न भी लगाए जाते रहे हैं। जनता भी इस विषय में जागृत हुई है। इसके साथ ही धार्मिक भावनाएँ आहत न हों इसके भी प्रयत्न किए जा रहे हैं। इतना सबकुछ होने के बावजूद गंगा के अस्तित्व पर संकट के बादल छाए हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र की 2007 की रिपोर्ट के अनुसार हिमालय पर स्थित गंगा की जलापूर्ति करने वाले हिमशिखर की 2030 तक समाप्त हो जाने की आशंका है। इसके बाद गंगा नदी का जल मानसून पर निर्भर हो जाएगा।
=>गंगा को प्रदूषण से मुक्त करने के लिये अनेको सरकारी प्रयास और योजनाये चल रही है जिसमे नमामि गंगे योजना :-
गंगा को निर्मल और अविरल बनाने के काम पर लगभग 40 से 50 हजार करोड़ रुपये तक का खर्च आने का अनुमान है। जबकि सरकार ने फिलहाल इस काम के लिए 20 हजार करोड़ रूपए आवांटित किए गए हैं। गंगा को स्वच्छ करने में पांच साल का समय लगने की उम्मीद है, जबकि उसके घाटों के सौंदर्यीकरण व परिवहन की समूची योजना के क्रियान्वयन में लगभग डेढ़ दशक लग सकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि गंगा की स्थिति दुनिया की अन्य नदियों से भिन्न है। इसमें हर रोज लाखों लोग डुबकी लगाते हैं। करोड़ों लोगों की आस्था के महाकुंभ जैसे आयोजन होते हैं। सैकड़ों टन पूजन सामग्री भी इसमें प्रवाहित होती है।जिसे रोकना सबसे बडी चुनौती है प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद नरेन्द्र मोदी ने गंगा नदी में प्रदूषण पर नियंत्रण करने और इसकी सफाई का अभियान चलाया। इसके बाद उन्होंने जुलाई 2014 में आम बजट में नमामि गंगा नामक एक परियोजना आरम्भ की। इसी परियोजना के हिस्से के रूप में भारत सरकार ने गंगा के किनारे स्थित 48 औद्योगिक इकाइयों को बन्द करने का आदेश दिया है। अनेको तकनिकियो के जरिये गंगा सफाई अभियान चलाया जा रहा है। जून 2015 से इसे आठ शहरों कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, मथुरा-वृंदावन, पटना, साहिबगंज हरिद्वार व नवद्वीप में गंगा सफाई योजना को पायलट परियोजना के रूप में शुरू किया गया। यह काम घाटों पर किया जा रहा है। इसमें ट्रेश स्कीमर, एरेटर्स, बूम आदि अति आधुनीक करोड़ो की लागत के उपकरणों का उपयोग किया जाएगा। जिसकी आपूर्ति के लिये श्रद्धालुओं को उनके परिजनों के नाम से दान देने के लिए प्रेरित किया जाएगा और लगने वाले शिलापट्टो पर उनके नाम भी लिखे जाएंगे। सफाई मे योगदान देने के लिये स्वयंसेवक ,सामाजिक समूहों को 10 से 20 दिन के लिए आमंत्रित करके रहने खाने की व्यवस्था के साथ कुछ राशि भी देने का प्रावदान किया जा रहा है । साथ ही आधुनिक शवदाह गृह, मॉडल धोबी घाट और अन्य घाटों पर सोलर पैनल आदि बनाए जाएंगे।
- इस सबके बावजूद समूची गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करना एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य है। इसकी सफलता के लिए जरूरी है कि सभी सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं, वाणिज्यिक उपक्रम और धार्मिक संस्थान भी पूरी ईमानदारी के साथ इस राष्ट्रीय कार्यक्रम से जुड़े। गंगा के आस-पास रहने वाले प्रत्येक भारतीय का भी यह नैतिक कर्तव्य बनता है कि वह स्वछ गंगा निर्मल गंगा के राष्ट्रीय कार्यक्रम में जिस रूप में भी संभव हो हर सम्भव प्रयास करे ।
ज्योती किरन रतन
0 टिप्पणियाँ