हिमगिरि किरीट से आकर निर्बाधित गति से बहना ।
हे गंगा मैया तुम हो भारत का मोहक गहना ।
तुम कोमल सी कल-कल में अपना इतिहास सुनातीं ।
कूलों की रोमावलियां सुनकर पुलकित हो जातीं ।
प्राणों की हर धड़कन में लहरों का गीत मचलना ।
सुरसरि तुमको देते हैं शीतल छाया निज तरुवर ।
आलिंगन नित करते हैं तव कंठहार बन गिरिवर।
तुमने हर पल चाहा है मानव को पावन करना ।
चिर ऋणी देश है भारत गरिमा से पूरित तुमसे ।
ऋषियों की हर-हर गंगे वाणी मुखरित है तुमसे ।
उल्लसित धरणि यह कहती तुमसे सुख वैभव रहना ।
पथ के पाहन भी हैं पवित्र पूजे पग-पग पर जाते ।(')
जिस स्थल पर भी चरण पड़ें वे घाट अमर हो जाते।
मनहर लगता श्रद्धालु जनों का दीप समर्पित करना ।
है घोर कृतघ्न मनुज जो माँ का ही मोल न जाने।
निर्मल जीवन धारा को मैली करने की ठाने ।
जो समझ न पाए अब भी,होगा तिल-तिल कर मरना ।
कान्ति शुक्ला
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