रचनाकार संख्या -22
सुभारती रची बसी स्वनाम धन्य तारिणी।
सजीवनी सुनादिता सदा सदा सुहासिनी।।
हिमालये प्रवाहिनी सुदुग्ध धार वर्षिणी।
प्रणाम बार बार है तुझे हे पापनाशिनी।।
सुयत्न पूर्ण स्वर्ग से धरा सँवारने बही।
भगीरथी हिमाद्रि तुंग श्रृंग गोद में गही।।
सुधामयी तरंग नाद गीत क्लेश हारिणी।
प्रणाम बार बार है तुझे हे पापनाशिनी।।
कहीं प्रचंड वेग तो कहीं बहे सुशांत ही।
भरे प्रमोद प्राण में हरे निराश क्लांत ही।।
सुदर्शना जटा शिवे विहारिणी सुपाविनी।
प्रणाम बार बार हैं तुझे हे पापनाशिनी।।
-आभा मेहता
अहमदाबाद (गुजरात)
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