रचनकार संख्या -11
हे भारत की जीवन धारा कलकल निनादिनी माँ गंगे
हिमगिरी से चलकर सागर तक निर्बाध वाहिनी माँ गंगे
देती अमृत सम जल अपना वन उपवन जन जन कण कण को
मिलती है अनुपम शांति तुम्हारे तीर दुखी आहत मन को
भारत जन मन की परम पूज्य प्रिय पतित पावनी माँ गंगे
उत्तर दक्षिण प्रांतो पंथो का भेद मिटाने वाली तुम
भावुक भक्तों पर माँ सी ममता प्यार लुटाने वाली तुम
भारत वसुन्धरा को वैभव कल्याण दायिनी माँ गंगे
तव निर्मल उज्जवल धारा ने कवि कण्ठों को कलगान दिये
कृषि को नित वरदान दिये सन्तो को गरिमा ज्ञान दिये
भारत की आध्यात्मिक संस्कृति की प्राण दायिनी माँ गंगे
तुम भारत की पहचान तुम्हारे दर्शन को हर मन प्यासा
जीते हैं लाखों लोग लिये तुममे डुबकी की एक आशा
भारत के जनजीवन के मन में नित निवासिनी माँ गंगे
जग से विक्षुब्ध असांत हृदय को शान्ति प्राप्ति की अभिलाषा
निर्मल जल की चंचल धारा देती है नवजीवन आशा
हे पाप नाशिनी , मोक्ष दायिनी जगत तारिणी माँ गंगे
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध
ए १ , शिला कुंज , नयागांव , जबलपुर
मो ७०००३७५७९८
0 टिप्पणियाँ