मैं हूँ गंगा -ड़ा.नीना छिब्बर

रचनाकार संख्‍या-14


  मैं हूँ गंगा !
            शैलसुता,जान्हवी दुर्गाय
          मुख्या,मंदाकिनी, भागीरथी
       अनगनित पूण्य स्वरूपा मेरे नाम
         भारत जनमानस की हृदतस्वामिनी
         पावन करना ,पतित जनो को मेरा धर्म
     निच्छल, निर्मल,शीतल जल धारा मेरा गर्व
      जो देती जीव मात्र को ,हरपल त्राण ।।
                    मैं गंगा हूँ!
     चाहती हूँ मैं भी आज एक भागीरथी प्रयास
      दूर करो मुझ में बहते , जैविक घातक रसायन
      धर्म, कर्म-कांड,पूजा अर्चना के नाम
        सब करते जल में अवांछित मनचाहा अर्पण
        गोमुख से निकल ,हिम की गोद से निकली
        मैदानों को देना चाहती,अमृत सा अन्न ,जल
           पर मानव अब हुआ ,स्वार्थी, लालची ,कुत्सित
            मेरे तट को बना दिया ,पर्यटन  व्यापारियों का स्थल
          संस्कार, शुद्धता, पवित्रता , अमरत्व भूल
          गंदे तन-मन, गंदे आचार-विचार,गंदे कर्म
           सौंपते मुझ में, भूले गंगा मैया का मान।।
                 मैं गंगा हूँ!
        मत भूल मानव ,पितरों के लिए लाया भागीरथ
     आज भी पितरों का इतिहास मेरे तट विश्राम पाता है
      अवशेष, रसायन, कूड़ा कचरा, जीवाश्म सब
     बना देंगे ,सरस्वती सी कहीं विलुप्त
     अपने बच्चों को फिर क्या दिखा   हिम्मत दोगे
      मंदिर, पूजा ,घंटियों की स्वरलहरी मेंना घोलो अशलील गीत
      कागजी योजनाएं, प्रयोग, विशाल बैनर, नारे
       नहीं रख पाएंगे मुख्या, शैलसुता, दुर्गाय का सम्मान
       बस पावनी चाहती हो, बनोभागीथ भारतीयो
         मूल मंत्र जल ही जीवन इसे आचरण में उतार ।।
   
        मौलीक और स्वरचित है ।
        ड़ा.नीना छिब्बर
           17/653
      चौपासनी हाउसिंग बोर्ड़
       जोधपुर 342008


 



 

 

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