गंगा का एक नाम भागीरथी भी है, जिसे इक्ष्वाकु वंश के राजा दिलीप के पुत्र भगीरथ कपिलऋषि के शाप से भस्म हुए अपने 60हजार सगरपुत्रो के उद्धार हेतु कठिन तपस्या से गंगा को धरती पर लाये थे,
जिसे महादेव ने अपनी निर्मल जटाओं में स्थान दिया, और सदियों से यह मोक्षदायिनी भारत भूमि और अनवरत गतिमान है।
पर वक्त बदलते स्वरूप में गंगा का पावन स्वरूप भी बदल गया, कारखानों की गंदगी, कूड़ा करकट सब इस पावन गंगा में फेंक कर इसे दूषित कर दिया, हम भूल गए ये वो जीवन दायिनी माँ है, जिसने धरती पर उतरकर न केवल शापित सगरपुत्रो का तर्पण किया वरन धरती के सूखे बंजर आँचल को सिंचित भी किया, विशाल शिखरों से उतरकर प्रकृति के सौंदर्य को अप्रतिम छटा प्रदान की, और प्यासी धरती को हरियाली प्रदान की, वर्ष भर जल से भरी गंगा हमारी जीवनदायिनी भी है, और हमारी धरा को शीतलता प्रदान कर हरा भरा रखने वाली जलदायिनी भी।
इसकी महत्ता को भूल रहे लोग गंगा को मैला कर रहे...नदियों में कचरा पॉलीथिन, फेक कर इसकी महिमा पर एक प्रश्न बना रहे, सोचो अगर गंगा नही होगी..तो हम सब जल बिना कैसे रहेंगे....? प्यासे मरेंगे और भस्म बनकर पड़े रहेंगे श्मशानों में, फिर कौन भगीरथ आएगा हमे मोक्ष दिलाने....?
इसलिए इस पावन गंगा को बचाओ, भगीरथ की इस मोक्षदायिनी को बचाओ, धरती की इस प्राणदायिनी को बचाओ....गंगा रहेगी...तभी हम सब रहेंगे...अगर हम सफाई नही कर सकते..तो कम से कम गंगा तटों को गन्दा भी न करे, आदर पूर्वक दुसरो को भी गन्दा न करने की सलाह दे, गंगा हमारी माँ है, उसके आँचल को साफ रखें....उसे केवल बहता हुआ पानी न समझे....यही सच्चा पुण्य है.... और गंगा के प्रति आस्था भी।
आओ हम सब शपथ ले, गंगा की निर्मलता को उसकी पवित्रता को हम भगीरथ पुत्रो को सहेजना है, यही सच्ची प्रार्थना है, और आस्था भी।
लेखिका
डॉ नीरज अग्रवाल"नन्दिनी"
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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