प्यास  बुझाती-ज्योतिर्मयी पंत, रचनाकार संख्‍या 5

गंगा मैया युगों युगों से जन मन में गंगा नदी का स्थान माँ  का है।  प्यास  बुझाती  ,खेतों को सींचती, अन्न-धन  दायिनी, जीवन दायिनी  ही  नहीं सतयुग से भगीरथ की तपस्या से अवतरित सगर के साठ  हज़ार पुत्रों को  मृत्युपरांत  मोक्ष प्रदायिनी गंगा नदी आज भी लोगों के ह्रदय में श्रद्धा और पूजनीय  स्थान पर स्थित है। अपने जीवन में एक बार गंगा स्नान के लिए लोग लालायित रहते हैं। मृत्यु के समय दो बूँद गंगाजल की कामना सभी के मन में रहती है।आज भी लोग अपने मृत परिजनों की अस्थियाँ  गंगा में ही प्रवाहित करते हैं।माना  जाता है इससे वैकुण्ठ धाम की और मोक्ष  की प्राप्ति होती है। लोग जन्म मरण के चक्र  से मुक्त  होते हैं।     
          व्रत ,उत्सवों पर गंगा तट  पर भक्तों की भीड़ लग जाती है। वहाँ  स्नान दान और पुण्य   ही नहीं वरन जीवन में किए गए पापों का भी परिक्षालन हो जाता है.भारतीय जन मानस में ,लोक गीतों में,कथाओं में  ,पूजा पाठ में गंगा और उसके पवित्र जल का समावेश होता है। 
           गंगा की महानता  का सबसे बड़ा कारण उसके जल की अनोखी विशेषता है जो कभी ख़राब नहीं होता। देश में ही नहीं विदेशी विज्ञान  शोध शालाओं में भी उसके जल की परीक्षा से यह बात सर्व मान्य है। अन्य नदी का  जल  कुछ समय बाद ख़राब हो जाता है वह पेय नहीं रहता। वहीँ गंगा जल को कई वषों के बाद भी पूर्व व्रत शुद्ध पाया गया है। वह न तो मैला होता है न कोई  गंध ही पैदा होती है.इसीलिए लोग तीर्थों से गणजल लाकर घरों में रखते हैं जो हर धार्मिक कार्य में प्रयुक्त किया जाता है।  
प्राचीन ऋषि मुनियों ने गंगा की स्तुति गायन किया है.कई स्तोत्र रचे हैं । महर्षि वाल्मीकि ,शंकराचार्य  और तुलसीदास ने उनकी स्तुति की है। 
 शंकराचार्य जी ने कहा है --
देवगण  की ईश्वरी ,तीनों लोकों को तारनेवाली शिव के मस्तक पर विराजने वाली ,सब प्राणियों की रक्षा करने वाली ,हरि  चरणों से आई ,हिम चन्द्रमा और मोती की तरह श्वेत तरंगों वाली। पापों का भर दूर कर भाव सागर से पार उतार दो। जिसने तुम्हारा जल पि लिया परम पद पा लेता है जो भक्ति करता है वह याम के द्वार न जाकर।वैकुण्ठ में निवास करता है। जह्नु ऋषि की कन्या हिमालय से बहती ,भीष्म पितामह की माँ हो। भक्तों को पाप मुक्त करने वाली हो। उन्होंने गंगा तट  पर निम्न योनि में रहना भी  श्रेष्ठ माना।
       तुलसीदास  जी ने विनय पत्रिका में कहा है -- 
हरनि पाप त्रिविधताप सुमिरत सुर सरित। 
बिलसति महि कल्प -बेलि मुद -मनोरथ फरित। .
सोहत ससि धवल धार सुधा सलिल भरित
विमल तर तरंग लसत रघुबर के -से चरित। 
तो बिनु जगदम्ब गंग  कलिजुग का चरित ?
घोर भव-अपार सिंधु तुलसी किमि तरित। 
 ऐसी पतित पावनि ,भाव बाधा  हारिणि  गंगा   माँ  लोगों के कलुष धोती आज खुद इतनी कलुषित और  विषैली हो गयी है  की उसका जल आचमन योग्य नहीं रहा गया है। आज हमारे स्वार्थ ने अपना सारा कूड़ा करकट ,मैले पदार्थ उसमें बहाने के कारण उसको इतना मलिन बना दिया है की उसका दम  घुटने लगा। अब कुछ लोगों में जागरूकता आई तो गंगा नदी की सफाई और स्वच्छता अभियान चलाये जा रहे हैं। कुछ लोग अनशन कर सरकार से गुहार लगा रहे हैं। सरकारी योजनाओं में करोड़ों रूपये लगने पर भी यह कार्य संपन्न नहीं हो पाया। ये योजनाएं कागज़ों पर ही रह जाती हैं। 
अब ज़रुरत इस बात की   है कि  प्रत्येक नागरिक इसे अपना कर्तव्य समझे। गंगा और सभी नदियों को स्वच्छ रखें। कूड़ा करकट ,फैक्ट्रियों का  कूड़ा न फेंकें। जिस नदी ने निरंतर माँ  की  तरह अपनी संतानों की भलाई की है, कल्याण किया है उनके प्रति हमारा भी यह कर्तव्य है। प्राचीन लोग इन्हें देवी- देवता- माँ  के रूप में पूजते आये तो हम सभ्य और विकसित कहलाए   जाने वाले  लोग इस ओर सिर्फ व्याख्यान देकर  अपने कर्तव्य  की इतिश्री न समझें।
      ज्योतिर्मयी पंत
    गुरुग्राम


 



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