सदियों से बहती चली आई है गंगा ।
सागर से मिलती चली आई है गंगा।।
दोनों किनारे अनगिनत शहर - ग्राम ;
युगों से बसाती चली आई है गंगा।।
जन्म से मृत्यु तक , हर पावन कार्य ;
सभी को कराती चली आई है गंगा।।
देश विदेश प्रसिद्ध,प्रमुख तीर्थ स्थल;
अपने में समेटती चलीआई है गंगा।।
हम मानते पवित्र,पर करते अपवित्र;
हमें क्षमा करती चली आई है गंगा।।
इसकी सफाई में हुए बहुत वारे न्यारे;
जैसे - तैसे रहती चली आई है गंगा।।
फिर कोई भगीरथअवतार ले"आनंद"
बाट जो जोहती चली आई है गंगा।।
----- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी
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