सदियों से बहती आई गंगा-देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी' रचनाकार संख्‍या 10

सदियों से बहती चली आई है गंगा ।
सागर से मिलती चली आई है गंगा।।


दोनों किनारे अनगिनत शहर - ग्राम ;
युगों से  बसाती  चली आई है गंगा।।


जन्म से मृत्यु तक , हर पावन कार्य ;
सभी को कराती चली आई है गंगा।।


देश विदेश प्रसिद्ध,प्रमुख तीर्थ स्थल;
अपने में समेटती चलीआई है गंगा।।


हम मानते पवित्र,पर करते अपवित्र;
हमें क्षमा करती चली आई है गंगा।।


इसकी सफाई में हुए बहुत वारे न्यारे;
जैसे - तैसे रहती चली आई है गंगा।।


फिर कोई भगीरथअवतार ले"आनंद"
बाट जो  जोहती चली आई है गंगा।।


----- देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी


 



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