आज चारों ओर निराशापूर्ण वातावरण अधिक देखने में आ रहा है।व्यक्ति तनाव में रहता है और अवसादग्रस्त हो चला है।कई बार अवसाद की स्थिति में आत्महत्या तक कर लेता है।मुख्य वजह यही है कि वह समस्याओं का दृढ़ता से सामना नहीं कर पाता है और अन्दर ही अन्दर खोखला होकर टूट सा जाता है।हाल ही के कुछ समय से यह भी देखा गया है कि व्यक्ति में सामन्जस्य स्थापित करने के गुणों का ह्रास होता चला जा रहा है।आपस में तालमेल स्थापित करने, मिलजुल कर रहने,धैर्यवान होने तथा त्याग और समर्पण की भावना का लोप होता जा रहा है।परिणामस्वरूप व्यक्ति अपने आप को समस्याओं से घिरा पाता है।छोटी से छोटी बात भी उसे बड़ी कठिनाई या परेशानी परिलक्षित होती है और ऐसे में वह जीवन के कई निर्णय भी ले लेता है।वैसे देखा जाए तो दुनिया में ऐसा कोई भी इंसान नहीं है जो समस्याग्रस्त नहीं हो या उसे किसी भी तरह की कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ रहा हो।
जीवन में सुख-दुख तो आते ही रहते हैं।मनुष्य जीवन पाया है तो अच्छे दिन भी आते हैं,बुरे दिन भी देखने को मिलते हैं लेकिन इनसे घबराना कैसा!मनुष्य सामाजिक प्राणी है।हरेक व्यक्ति किसी न किसी रूप में समस्याग्रस्त है।कई लोग ऐसे होते हैं जो स्वयं ही समस्याओं का पहाड़ खड़ा कर लेते हैं और फिर घबरा जाते हैं।इसके विपरीत कई लोग ऐसे भी होते हैं जो समस्या को समस्या के रूप में न लेते हुए उसे चुनौती रूप में स्वीकार कर उनका डटकर सामना करने के लिए तत्पर रहते हैं।जीवन में कठिनाईयाँ तो आती रहती हैं।कदम-कदम पर कठिनाईयाँ राह रोकने को सामने रोड़ा बनकर आ खड़ी होती हैं।कई लोग इन कठिनाइयों से घबराकर सदैव दुखी बने रहते हैं।हमेशा उनके चेहरे पर हवाईयाँ उड़ती दिखाई देंगी।हरदम उनकी हिम्मत पस्त ही दिखाई देती है।समस्याओं का लबादा ओढ़ लेने से उनमें नकारात्मकता घर कर जाती है।
देखा गया है कि ऐसे लोग अपनी समस्याओं, कठिनाइयों और परेशानियों के कारण स्वयं तो दुखी रहते ही हैं,दूसरों को भी दुखी कर देते हैं।ये लोग अपनी परेशानियों, अपनी कठिनाइयों, अपनी समस्याओं का यहाँ-वहाँ ढ़िंढ़ोरा पिटते रहते हैं और इन्हें सुना-सुनाकर दुखी होते रहते हैं।ऐसी स्थिति में समस्याएँ कम नहीं हो जाती हैं बल्कि देखा तो यह भी गया है कि समस्या और विकराल रूप धारण कर लेती है।इसे एक वास्तविक घटना के आधार पर यहाँ रखना चाहूँगा।एक परिवार में नवदम्पत्ति आपसी तालमेल और सामन्जस्य स्थापित नहीं कर पा रहा था।छोटी-छोटी बात को लेकर उनमें झगड़े होते रहते थे।पति-पत्नी दोनों ही आपस में मिल-बैठकर विवाद के मूल में न जाकर अपने परिवार के अन्य सदस्यों ,परिचितों और रिश्तेदारों के सम्मुख इसे गम्भीर समस्या के रूप में बताने लगे। कुछ समझदार लोगों ने समझाइश देना चाही लेकिन अधिकांश लोगों ने आग में घी डालने का काम किया और परिणाम यह हुआ कि उनमें तलाक की नौबत आ गई।यदि उन्होंने समझदारी का परिचय दिया होता तो इस स्थिति को टाला जा सकता था।
यहाँ इस घटना का उल्लेख करने का आशय भी यही था कि जो भी समस्या है उसका हल स्वयं को ही निकालना होगा,इन्हें जितना सार्वजनिक किया जाएगा, वे उतनी ही बढ़ती चली जाएंगी।
जीवन में समस्याएँ,परेशानी, कठिनाईयाँ आना सामान्य बात है।ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिलेगा जिसे जिन्दगी की कठिन डगर में कभी किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा हो या इन समस्याओं के कारण उसे कभी कोई कठिनाई नहीं आई हो या फिर कोई परेशानी नहीं उठाना पड़ी हो।लेकिन इनसे घबराकर जीवन का आनन्द ही नहीं ले पाएं,ऐसा तो हो नहीं सकता।यदि जीवन में दुख है तो सुख भी है।मानव जीवन में कभी कोई भाव स्थायी नहीं होता।यदि आज दुख है तो सुख के पल भी विद्यमान है।ऐसा हो ही नहीं सकता कि मानव जीवन में दुख ही दुख हैं या सुख ही सुख हैं।दोनों साथ साथ चलते हैं, कम-ज्यादा परिमाण में।
कई लोग होते हैं जो सुख के सुनहले पलों में भी समस्याएँ खड़ी कर लेते हैं और दुखों को आमंत्रित कर लेते हैं।समस्याएँ भले ही बड़ी न हों या फिर वे समस्या हो ही नहीं तब भी हम उसे समस्या मानकर चिन्ता में डूब जाते हैं।कुछ समस्याएँ भी ऐसी होती हैं जिनपर मानव मात्र का कोई वश नहीं होता, ऐसे में जिन बातों के लिए इंसान स्वयं उत्तरदायी नहीं, तब उसके लिए क्यों परेशान हुआ जाए।अलबत्ता उन समस्याओं से निजात पाई जा सकती है जिन्हें व्यक्ति स्वयं उपजा लेता है या कहा जाए कि उन समस्याओं को खड़ी कर लेता है।ऐसे मामलों में यदि समझदारी का परिचय दें तो कई समस्याएँ आसानी से हल हो सकती हैं।ऐसा नहीं है कि समस्याओं के कोई हल ही न हों,उनसे निपटने के कोई उपाय ही न हों।
हाँ,एक बात अवश्य है कि अपने जीवन में आने वाली परेशानियों, कठिनाइयों और समस्याओं का सामना व्यक्ति को स्वयं करना पड़ता है, ऐसी स्थिति में स्वयं को मानसिक तौर पर इतना सुदृढ़ और सक्षम बनाना होगा कि ये सभी अपने दुख का कारण नहीं बन सके।लोग तो जगहँसाई के अवसर खोजते रहते हैं।यदि हम अपने इन संकटों, विपत्तियों को हरेक शख्स के सामने उजागर करेंगे तो वे इनसे निजात पाने में सहायता तो नहीं करेंगे बल्कि उलझनों को और ज्यादा बढ़ा देंगे।
इसलिए बेहतर होगा कि अपनी समस्याओं, कठिनाइयों और परेशानियों से स्वयं निपटें और उनके हल निकालें,उनसे घबरायें नहीं बल्कि जीवटता से सामना करें।हाँ,यह अवश्य ही किया जा सकता है कि जो वास्तव में हितैषी हैं,शुभचिंतक हैं,उनसे अपनी परेशानियों के सम्बन्ध में चर्चा की जा सकती है, सलाह ली जा सकती है, मार्गदर्शन प्राप्त किया जा सकता है किन्तु इस बात का भी ध्यान रखना जरूरी है कि कौन सच्चा हितैषी है,कौन सच्चा शुभचिंतक है,इसकी पहचान कर लें। निष्कर्षतः,इसी में सार्थकता भी है कि हरेक समस्या, कठिनाई और परेशानी को चुनौती के रूप में लें।
डॉ प्रदीप उपाध्याय 16,अम्बिका भवन,बाबूजी की कोठी,उपाध्याय नगर,मेंढकी रोड़,देवास,म.प्र.
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