रचनाकार संख्या 13
हाँ ! मै वही गंगा हूँ
भगीरथ के कठिन
तपस्या का फल
हाँ ! मैं वही गंगा हूँ
जो निवास करती है
शिव जटा पर
हाँ ! मै वही गंगा हूँ
जिसने जन्मी थी
अपने कोख से भीष्म
हाँ ! मैं वही गंगा हूँ
जिसके तट पर
विकसित हुई है
अनेक सभ्यताएँ
हाँ ! मैं बिल्कुल वही गंगा हूँ
जो उच्च हिम श्रृंखला से
टकरा कर बिखरती हूँ
बूंद बूंद निर्झर बनकर
करोड़ो कंकर पत्थरों से
टकरा कर पहुंचती हूँ
गाँव गाँव शहर शहर
बुझाती रही हूँ प्यास
और तुम्हारे पापों को
खुद में समाहित कर
करती रही हूँ तुझे निष्पाप
हाँ ! मै वही गंगा हूँ
जिसने झेला है
तुम्हारे अनगिनत
पुरखों की अंत्येष्टि
और किया है अपने
पावन जल से
अनगिनत आत्माओं का तर्पण
सदियों से झेला है तुम्हारे
नदी नालों कारखाने का विषाक्त जल
न जाने कितनी सदियों से
जारी है तेरा ये कृत्य
और अनवरत तेरा बोझ ढोती
मैली हो गई हूँ मैं
अब जिम्मेदारी तुम्हारी कि
मेरी यह अविरल धारा
यूँ ही बहती रहे या
जमुना सी तब्दील हो जाए नाले में
या फिर मैं भी
विलुप्त हो जाऊँ
सरस्वती के मानिंद
सनद रहे ! धरा पर फिर कोई
भगीरथ नही जन्म लेने वाला
अमित कु अम्बष्ट " आमिली "
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