ये सचमुच पढ़ने आए हैं-सुभाषंचदर

संघी भी लड़ो,वामी भी लड़ो
नकाबी भी लड़ो,नंगे भी लड़ो
इसको मारो,उसको डांटो
इसको चेपो, उसको काटो
तुमको लड़ना है खूब लड़ो
पर इनसे तुम अब दूर रहो
ये बहुत दूर से आए हैं
ये सचमुच पढ़ने आए हैं।



इसको आज़ादी लानी है
उसको संस्कार बदलने हैं
इसे भगवे की शान बचानी है
उसे हंसिए से पंख कुतरने हैं
पर इन सबसे अलग थलग
कुछ इन सबके हैं यार नहीं
ये किसी पार्टी के भक्त नहीं
इनमें कोई गद्दार नहीं
बस उनको तुम पढ़ लेने दो
जो सचमुच पढ़ने आए हैं


आंखों में सपने लेकर
ये बहुत दूर से आए हैं
वो बिहार के दूर गांव से है
ये नॉर्थ ईस्ट से है आई
उसका बापू खेतों में खटे
ये आंखों में भर डर लाई
पर एक चीज तो कॉमन है
सबकी आंखों में हैं सपने
कुछ बनने की खातिर ये सब
छोड़कर आए हैं अपने
इनके सपने ना बदरंग करो
पढ़ने दो ना तंग करो
ये बहुत दूर से आए हैं
ये सिर्फ पढ़ने को आए हैं


उस को अतीत बदलना है
इसे खुशहाली लानी है
उस को गरीबी हटानी थी
इसको इज्ज़त कमानी है
इसके सपने में अम्मा आती है
उसको नदी पहाड़ बुलाते हैं
ये घर से आने पर रोती है ।
ये त्योहार में तकिए भिगोते हैं ।


बड़ी कीमत दी है इन्होंने
प्लीज़ इन्हे पढ़ लेने दो
इनको अपनी ये किस्मत
खुद ही से गढ़ लेने दो


तुमको लड़ना है खूब लड़ो
पर इनसे तुम अब दूर रहो
ये बहुत कष्ट उठाकर आए हैं
ये सचमुच पढ़ने आए हैं।


 




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