पेरिय पुराणम या महा पुराण-  डाॅ.जमुना कृष्णराज

होली विशेष



तमिल साहित्य में चेक्किऴार द्वारा रचित महापुराण शैव संतों की जीवनी का अत्यंत महत्वपूर्ण संग्रह माना जाता है। इसका रचनाकाल करीब आठवीं सदी से बारहवीं सदी के बीच का आंका जाता है किंतु इतिहासकारों की मान्यता के अनुसार यह बारहवीं सदी ही है। इसकी रचना के पीछे एक प्रसिद्ध लोक गाथा है जिसकी कहानी निम्न प्रकार हैः
अनपायन चोल राजा एक शिव भक्त थे पर वे चिंतामणि नामक पुस्तक में एक जैन राजा जीवराज की जीवनी पढ़कर खूब प्रभावित हुए। इस पर शिव भक्तों ने राजा से प्रश्न किया कि जब शैव संतों की गाथाएं इतनी पवित्र और प्रसिद्ध थीं तो एक सामान्य जैन राजा की प्रशंसा क्यों? उन्होंने चिंतामणि के प्रति राजा की अभिरुचि को नीम रस से तुलना की जबकि शैव संतों की जीवनी ईख के रस के समान था।
राजा ने पूछा,‘‘यह पुस्तक कहां है? किसने लिखी है? किसने पढ़ी है?किसने सुना है?किसने इसकी चर्चा की है?कृपया मुझे अवगत कराएं ताकि मैं भी इसे पढ़कर लाभान्वित हो सकूं।’’तब वहां उपस्थित चेक्किऴार ने समझाया कि तिरुवारूर के शिवजी ने अपने मित्र एवं भक्त बने सुंदरमूर्ति को आदेश दिया कि वह उनका स्तुतिगान अपने भक्तों के सेवक के रूप में करें। इसकी पहली पंक्ति ही भगवान के निर्देश के अनुसार प्रारंभ होता है जिसका अनुवाद हैः    मैं तिल्लै यानि चिदंबरम के ब्राह्मणों के सेवकों का सेवक हूं।(तिल्लै वाऴ अंदणर तम अडियार्कुम अडियन)।
सुंदरमूर्ति के गाए ग्यारह पदों में 63 शैव संतों की गाथाएं प्रस्तुत हैं। इन अनूठी गाथाओं की पं्रशंसा देखकर राजा अनपायन ने कवि सेक्किऴार को गद्य शैली में इन संतों की जीवनी लिखने का निर्देश दिया। इस पर सेक्किऴार सीधा चिदंबरम गए और भगवान नटराज से प्रार्थना की कि वे उन्हें अपनी इस परियोजना में अपना दिव्य मार्गदर्शन दें। इस पर अचानक वहां उपस्थित सभी भक्तों ने गर्भगृह से एक दिव्य आवाज़ सुनी,‘‘उलकेल्लाम उणन्र्दाेर्करियवर’’ इन शब्दों से प्रारंभ करो।’’अर्थात् ‘‘जिस शक्ति को बुद्धिमान व्यक्ति भी पहचान न सके।’’
अनपायन चोला महाराजा को जब इस चमत्कार की सूचना मिली तो वे तुरंत चिदंबरम गए और सेक्किऴार के पैर पड़कर महापुराण अर्थात् 63 शैव संतों की गाथाएं उन्हें और सभी शिव भक्तों को सुनाने की विनय पूर्वक आग्रह करने लगे। तब तमिल वर्ष का पहला महीना चैत्र था। 
भगवान नटराज का जन्म नक्षत्र आद्र्रा था और युवा संत तिरुज्ञानसंबंदर जिसे देवी पार्वती जी ने स्तनपान करवाया उसका भी नक्षत्र चैत्र का आद्र्रा ही था,इसलिए चेक्किऴार ने महापुराण का पाठ उसी दिन आरंभ कर अगले वर्ष के उसी दिन संपन्न करने का निश्चय किया। 
यही पेरिय पुराणम या महापुराण के नाम से जाना जाता है। 



         डाॅ.जमुना कृष्णराज,चेन्नई
         मो.नंः9444400820


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