प्रेम फरवरी
छेड़ती है फागुनी हवा , इसको ज़रा डाँटो भाभी जी !
क्वारे मन की हर्षमय व्यथा,कुछ तो ज़रा बाँटो भाभी जी
! !
फिर से नया साल आया है,फिर वही सवाल लाया है ,
किसके गाल पर गुलाल दूँ ,पर्ची जरा काटो भाभी जी !
मीठी हैं चिकोटियाँ तेरी ,ढीठ बड़ी चोटियाँ तेरी ,
बहक जायगा वसंत भी ,टिकली जरा साटो भाभी जी !
गा रही है घृणा आजकल ,मृत्यु की लिखी हुई ग़जल ,
वासंतिक गाँव की पुलिया,बढ़के ज़रा पाटो भाभी जी !
मुझमें नया रंग तो भरो,जोड़ी का जुगाड़ तो करो ,
शादी डाॅट कम की सूची से नाम ज़रा छाँटो भाभी जी !
ईश्वर करुण
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