होली मिलन -शुचि भवि

होली विशेष -7


"उठो हर्ष सुबह हो गयी" सुनीता की आवाज सुन विशाल भी आ गए और बोले, 'सोने दो सुनीता रात देर तक पढ़ रहा था, मैं ऑफिस का काम खत्म कर दो बजे सोया था, हर्ष तबभी पढ़ रहा था।' माँ-पिताजी की बात सुन हर्ष बोला,'उठ रहा हूँ,बस कुछ देर और, दोस्त भी आ जायेंगे फिर, होली खेलने भी तो जाना है, इसलिए कल देर रात तक पढ़ा हूँ'। सुनीता और विशाल एक साथ ही बोले तुम हमारे साथ अपनी बुआ के घर नहीं चलोगे?तुम्हारी बुआ जी ने बुलाया है सभी को "होली मिलन" के लिए'। माँ, कॉलेज का आख़िरी साल है न, सब दोस्तों के साथ इस बार होली खेलूँगा, आप बुआ जी को सॉरी कह देना प्लीज ।


हर्ष अपने दोस्तों के साथ बाइक पर और सुनीता-विशाल कार में अपने अपने गंतव्य की ओर कुछ ही देर में निकल गए। मोबाइल की घंटी बज रही थी सुनीता ने फोन उठाया उसकी सहेली का फोन था, वह अमेरिका से आज सुबह ही आई थी और एक दिन के लिए बस देश की राजधानी में रुकी थी।  सुनीता के कहने पर विशाल ने गाड़ी सुनीता की सहेली के होटल की तरफ मोड़ ली थी, दोनों सखियों ने खूब बातें,बहुत ख़ुश हुईं। विशाल तबतक लैपटॉप पर अपने ऑफिस के काम में व्यस्त रहे। तभी विशाल की बहन पूजा का फोन आया, वह नाराज होते हुए कह रही थी कितनी देर कर दी भैया इंतजार कर रहे हैं सभी यहाँ, आप लोग कहाँ हो? जल्दी आओ न।  सुनीता अपनी सहेली से विदा लेकर जैसे ही  कार में बैठी, विशाल बोल पड़े," देखो अब और देर कहीं न करना, कहीं भी नहीं रुकेंगे रास्ते में हम अब, पूजा बहुत नाराज हो रही है सिर्फ हमारा ही इंतजार हो रहा है वहाँ"। सुनीता ने हाँ में सिर हिला दिया था।


 एक्सप्रेस वे पर उनकी कार दौड़ने लगी,तभी अचानक सड़क पर जाम दिखा, विशाल बेचैन हो गए,अरे यह क्या आज? आज पूजा की डाँट लिखी है लगता है"। धीरे-धीरे जाम से बाहर निकलने का प्रयास कर रहे थे तभी उनके कानों में आवाज आई, "बहुत बुरी तरह से मारा है ट्रक ने, सिर पर चोट है बिचारे की, कोई जल्दी हॉस्पिटल ले जाए तो शायद बच जाएगा"। सुनीता ने विशाल की तरफ देखा और उनकी आंखों में न पढ़ते ही चुप रह गई थी। कुछ भी बोलने के लिए उसे बहुत हिम्मत जुटानी पड़ी।"विशाल प्लीज़ रोकिए भी कार,कौन है न मालूम,चलिये न हम ही उसे अस्पताल पहुँचा देते हैं"।विशाल बीच में ही सुनीता को चुप कराते हुए बोल पड़े, "तुम तो देख रही हो,हम आलरेडी लेट हैं, समझो भी,बहुत लोग हैं वहाँ, कोई न कोई ले ही जायेगा"।सुनीता चाह कर भी कुछ न कर पाई थी।


 विशाल की कार जाम खत्म होते ही फिर से तेज दौड़ती हुई पूजा के घर के सामने ही आकर रुकी। जल्दबाजी में विशाल उतरे और होली मिलन में लीन हो गए। सुनीता को रह-रहकर एक्सीडेंट वाली आवाज परेशान करती रही और उसे अफ़सोस होता रहा कि वह यहाँ आने के बदले उस घायल को हॉस्पिटल क्यों न ले गई।


 शाम के पाँच बज रहे थे, सुनीता ने विशाल से कहा, "हर्ष का दिन भर फोन नहीं आया है और मैंने भी नहीं किया कि होली खेल रहा होगा दोस्तों के साथ, अब लगा रही हूँ तो बंद मिल रहा है,बैटरी डिस्चार्ज होगी शायद फोन की, आप देखिए शायद आपको कॉल किया हो"। विशाल जेब में हाथ डाले तो फोन न पाकर बोले, कार में ही छूट गया जल्दबाजी में शायद। पूजा से विदा लेकर दोनों जब कार में बैठे तो विशाल में देखा 50 मिस्ड कॉल थे, तभी फिर से फोन बज उठा, फ़ोन उठाकर बात करते ही साथ विशाल बेसुध हो गए। सुनीता दौड़कर पूजा को घर से बुला लायी।


 अगली सुबह अखबार की हेडलाइन थी "बेटा सड़क पर घायल तड़पता रहा और माँ- पिताजी बेटे को सड़क पर तड़फता छोड़ "होली मिलन" के लिए निकल गए"।  सुनीता आज भी सोचती है, काश! उस दिन विशाल की 'न' को वह 'हाँ' में बदल सकी होती।


शुचि 'भवि'
भिलाई, छत्तीसगढ़


 


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