आओ ! प्रेम संधान करें हम-रवीन्द्र जुगरान

प्रेम फरवरी


     वसन्त आगमन फागुन यौवन, 

     चैत्र  शक्ति   संचार  करें  हम।

आओ ! प्रेम संधान करें हम ।।

 

     विद्या  बुद्धि  सुर दायिनी, 

     भारती  मां  हंस  वाहिनी।

     अर्चन वंदन और समर्पण,

आओ ! गीत का गान करें हम।। 1

 

     कली पुष्प बन करके झूमें, 

     मादकता की मधुशाला में ।

     भवरों का गुंजन कोलाहल, 

आओ ! रस का पान करें हम।।2

 

     पतझड़ की  वेला  है  जाती,

     प्रकृति नव रचना संग आती।

     फाग  सुहास  पुलकित  पात,

आओ ! स्वागत-सत्कार करें हम।।3

 

     फागुन रंग  बरसता  आता,

     जीवन को जीवन दे जाता।

     भर पिचकारी  हाथ गुलाल,

आओ ! सब मिल एक बनें हम।।4

 

     भाषा मराठी जाति गुजराती, 

     केरल  की  मलयाली  माटी।

     पर्वत  माला  मण्डित वसुधा, 

आओ ! भारत प्रेम करें हम ।।5

आओ ! प्रेम संधान करें हम ।।

            ***

स्वरचित-

रवीन्द्र जुगरान ,दिल्ली 

सम्पर्क - 95 99 466 471


 

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