बासंतिक हवा-आरती रॉय

होली विशेष -9


सुबह सुबह  ढ़ोल और मृदंग की आवाज सुनकर पीहू का मन मचल उठा। सच में होली कितना प्यारा त्योहार है रंग अबीर की बरसात है।जोगिरा सुन कर मन मगन हो रहा था । पाँव में चप्पल डाल कर  बागों  की ओर चल दी ।अहा ;आमों में मंजर आ गये हैं, उनकी खुशबू से पवन भी मानों बौरा गई है बसंत की बहार महसूस होने लगी ।वह खोई खोई सी बाग के एक कोने में बैठकर बासंतिक बयार से बातें करने लगी।
प्यार है प्रतिकार है बसंत का उल्लास है,प्रकृति चहूँओर खुशीयां बिखेर रही हैं।भंवरों की गुन गुन और मंजर की खुशबू हवाओं में घुलमिल गई हैं ।ऐसा लग रहा था जैसे शौर्य का संदेशा पवन लेकर आया है।“मेरी प्यारी पीहू  कब तक तुम मुझे याद कर आँसू बहाती रहोगी ?तनाव और परेशानी को भूल कर सुबह की बेला में जरा फागुन को अंतरमन के द्वार खोलने दो, मुस्कुराहट स्वत:आ जायेगी अपनी जिंदगी में बसंत को आने दो ।” दूर कहीँ गाना बज रहा था ‘सुन री पवन ..पवन पुरबैईया मैं हूँ अकेली अलबेली तू सहेली मेरी  बन जा साथिया’ वाह कितना प्यारा गीत है। बागों से टहलते हुए मंदिर की ओर अपने कदम बढाई। 
हेएए..भगवान बच्चों की टोली को यह क्या सुझी उन्होंने ना समय देखा ना ही कुछ सोचने समझने की कोशिश की एक साथ कई रंगों भरे गुब्बारे उसके ऊपर फेंक कर ताली बजाते हुए गाने लगे;  “बुरा ना मानों होली है।”
भींगे बदन मँदिर जाना सही नहीं लगा लोग क्या सोचेंगे ?ऐसा सोचते हुए घर की ओर कदम बढ़ा दी।
“ये क्या सुबह-सुबह दरवाजे पर पँचों की भीड़ क्यों उमड़ आई है !”
मामला समझने से पहले अपने भींगे बदन का ख्याल आया वह चुपचाप कपड़े बदलने घर के अंदर जाने लगी। 
“रुक जा बहुरानी ; आज अपने गाँव की भलाई के लिये एक पुण्य का काम कर दे।बस थोड़ी देर के लिए मध्य विद्यालय तक चलो ।”
“क्या हुआ मुखिया जी आज होली है विद्यालय तो बंद है ।”
“स्कूल बंद है बच्चों के लिये गाँव वालों का जलसा या कोई भी समारोह भी तो स्कूल प्रांगण में ही होता है।बस एक महापुरुष की मुर्ति का अनावरण आज तेरे हाथों से हो यह पूरे गाँव वालों की इच्छा है।”
पता नहीं किसकी मुर्ति का अनावरण मेरे हाथों करवाना चाह रहे हैं !बेमतलब की राजनीति में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है ऐसा तो मैं कई बार कह चुकि हूँ । अच्छा चल कर देख ही लेती हूँ कौन हैं वो महापुरुष।!
स्कूल प्रांगण में  पहुँच कर ज्यों ही मूर्ति का अनावरण करना चाही पिचकारियों से रंगों की बौछार होने लगी ।लाउडस्पीकर पर गाना चल रहा था ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’।
पीहू  हतप्रभ सी अपने पति अमर शहीद कैप्टन शौर्य की आदम कद मूर्ति की आँखों में झाँकने लगी ।
 “कैप्टन शौर्य सच में अमर हो आप अपनी शरारतों से बाज नहीं आते।”
आँखों से बासंतिक स्नेह रस धार का प्रवाह होंने लगा ।सम्मान स्वरुप उसकी सूनी कलाइयों में रंग बिरंगी चूड़ियाँ गाँव की बृद्ध महिलाएं पहनाने लगीं।
“अमर शहीद की पत्नी बसंत को आने दो।”
पीहू  लाज़  से सिमटती हुई अपनी चूड़ियां  गुलाबी शॉल के अंदर छूपाने की नाकाम कोशिश करने लगी।


                   
आरती रॉय . दरभंगा. बिहार


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