बात उन दिनो की -कुमुद दुबे

होली संस्‍मरण


जब टेसू के वृक्ष पर एक भी पत्ता नहीं रहता और वृक्ष केसरिया फूलों का आवरण पहन लेता है तब मन के द्वार पर होली के आगाज और मस्ती की मनमोहक दस्तक का मधुर आभास हो उठता है। टेसू के चटक लालिमा-मिश्रित केसरिया फूल, फागुनी फिज़ा को भी रंगीन बना देते हैं।मुझे सहज ही स्मरण हो आता है लगभग 20 बरस पहले की उस होली का, जिसे याद करके मैं आज भी अपनी हँसी नहीं रोक पाती हूँ। गर न होंगे क़िस्से तो क्या कहेंगे किससे? 
बात उन दिनों की है जब हम भोपाल में शासकीय आवास की कालोनी में रहते थे। हमारे पड़ोस के बंगले में कोषालय अधिकारी मेडम भानुप्रिया परिवार रहता था।होली का त्यौहार कालोनीवासियों ने मिलकर पार्क में होलिका दहन किया एकदूसरे को गुलाल लगाया और अपने अपने घर चले गये। 
दूसरे दिन धुलेण्डी पर्व पर सभी ने परिवार सहित खूब रंग खेला और गरमागरम आलू बड़े,भजिये, स्वादिष्ट ठंडाई का लुत्फ उठाया। सभी महिलाएं, बच्चे रंग खेल घर लौट आये और पुरूष वर्ग थोड़ी देर बाद लौटे। ठंडाई ज्यादा मात्रा में बन गयी थी, अत: बची हुयी ठंडाई (रुची अनुसार) बांट दी गई। बाद में पतिदेव भी अपने मंत्रालयीन ग्रुप में होली खेल ठंडाई लेकर आ गये। हमारे यहां सदस्य कम और ठंडाई  ज्यादा! अतः मैंने मेडम भानुप्रिया के घर थोड़ी ठंडाई भिजवा दी। रात लगभग 8 बजे होंगे उनका दस वर्षीय बेटा दौड़ा चला आया आंटी जल्दी चलिये मम्मी को पता नहीं क्या हो गया हंसे जा रही है। हम जल्दी से उनके घर पहुचें। वाकई वे लगातार हंसे जा रही थीं। पहले तो उनको हंसते देख हमें भी हंसी आने लगी, पर जल्दी ही हमने अपनी हंसी रोकी। मिस्टर भानुप्रिया ने बताया आपने जो ठंडाई भेजी थी श्रीमती जी एक गिलास पूरा पी गई, इसके बाद से इनके ये हाल हैं। तब मेरे पतिदेव ने बताया कि तुम लोगों (महिलाआें और बच्चों) के जाने के बाद ठंडाई में भांग मिला दी गई थी यह उसी भांग का असर है। 
  इसके बाद भांग का असर खत्म करने के लिये नींबू पानी और न जाने कितने उपाय हम रात भर करते रहे। सुबह जाकर उनका हंसना बंद हुआ। उस दिन के बाद मेडम ने तो ठंडाई से तौबा कर ली। प्रतिवर्ष होली के पर्व के साथ वह होली याद आ ही जाती है। अब हम इन्दौर में और वे भोपाल में रहती हैं। अब यह पर्व पहले-सा तो नहीं रहा, लेकिन हर होली पर फोन करके हम उस होली के दिन को याद कर खूब हंस लेते हैं।


    कुमुद दुबे
महालक्ष्मी नगर
इन्दौर (म०प्र०)


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