बचपन की होली - नीता

संस्‍मरण  बचपन की होली

होली का त्यौहार हम सभी के लिए विशेष होता है हर वर्ग के लिए भी यह त्योहार उत्साह से भरा हुआ होता है। खासकर बच्चों के लिए। मुझे अपना होली के दिनों का बचपन अभी तक याद है त्योहार के कुछ दिन पहले से ही हम बहुत अधिक उत्साहित रहते थे, वह होलिका दहन की कहानियां दादा दादी से सुनना और सोचना कि वाकई में प्रहलाद इतना बड़ा भक्त था कि उसे होलिका दहन में बैठने पर भी कुछ नहीं हुआ। और हिरण्यकश्य और होलिका के लिए मन में बुरे भाव लिए हुए अचंभित रहते थे होलिका दहन के दिन दादी हम सभी की नजर उतारती थी और उसे होलिका में डाल देती थी जैसे नमक मिर्च बगैरा। और फिर दूसरे दिन सुबह उठते ही रंगों की बौछार पिचकारी की फुहार से दूसरों के ऊपर छतों से डालना और छुप जाना। सारा शहर रंग बिरंगे रंगों से नहाया हुआ सा प्रतीत होता था मोहल्ले के सारे बच्चे टोलियों के रूप में निकल पड़ते थे इस तरह सारा दिन मस्ती में चूर होकर शाम को घर आते थे शरीर पर लगा हुआ रंग छुड़ाने की जद्दोजहद में घंटों नहाया करते थे और फिर वह पकवानों का मजा, विशेषकर गुजिया पपड़ी इस त्यौहार के खास व्यंजन है इस तरह वह दिन भुलाए नहीं भूलते आज भी पुराने साथियों से मिलकर हम वह दिन याद करते हैं और खुश होते हैं वाकई में त्यौहार का मकसद भी यही है आपसी रंजिश भुलाकर एक दूसरे को गले लगाना आज के समय में होली मनाने का तरीका कुछ हद तक बदला है क्योंकि बच्चों पर पढ़ाई का बोझ भी ज्यादा है परंतु हमारे भारत में हर त्यौहार के आने के पहले ही हम अधिक उत्साह से भर कर उसकी तैयारियां करते हैं और उसे विधि विधान से भी मनाते हैं यह हमारे भारत देश की विशेषता है। इस तरह बचपन की यादों को समेटे हुए सभी को मेरी तरफ से होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।🎨


नीता चतुर्वेदी विदिशा मध्‍यप्रदेश


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