छाँव की तलाश में तो उम्र तमाम हो जाती है.लेकिन तपती दोपहर कभी-कभी ढलती हीं नही ,फ़ासलों को कम करने की नाकाम कोशिश में हीं उम्र गुजर जाती है.लेकिन हाँथ कुछ नहीं आता। कुछ आता भी है तो जिन्दगी में वही खालीपन। वही एकलता, अपनी जडे जमाये हुए। गुजरे वक्त में भी ऐसा कुछ खास होता हीं नहीं, कि जिसकी याद के सहारे गमगीनी कुछ कम कि जाती.. पिछले एहसास भी दर्द हीं दे जाते और हर आने वाला कल तो जैसे ग़म का नया फ़साना हीं था.. जो अपने आप से तथाकथीत अपनों से पराजित हो... वो और किस आशा या आकांक्षा का सहारा तलाशे .? गंगा के घर से रोज लड़ने -झगड़ने की आवाजें आती.सारा मुहल्ला उस घर से परिचित था.क्योंकि हर रोज किसी न किसी बात को लेकर लडाई होती हीं रहती। उमा संयुक्त परिवार में रहती थी।वह आकर्षक व्यक्तित्व की मालकिन थी।कोई गुण ऐसा नहीं जो वो नहीं जानती।फिर भी घर वाले दस ऐब उसमें निकालते रहते।मैं जब भी देखती वो किसी न किसी काम में लगी रहती।साथ - साथ पढाई भी करती.उसे उसके लिये भी ताने मिलते पर कुछ बोलती नहीं।
अब तो वो शहर के बडे़ स्कूल में पढाने लगी भी थी । उसके बच्चे भी पढ़ने लगे। बेटी तो उसी के साथ जाती.स्कूल से आने के बाद जितना संभव घर के कामों में लगी रहती.जब स्कूल बंद होता तो। सुबह जगने के बाद एक पल भी साँस लेने की फ़ुर्सत नहीं मिलती। सबकी पसंद ना पसंद हर बात का ध्यान रखती। सबके खाने का समय भी अलग। कोई चाय माँगता ,कोई गरम पानी तो कोई नाश्ता। ऐसा लगता वो इंसान नहीं रोबोट हो। रसोई से निकलकर सारा घर तथा बाथरूम तक को साफ़ कर नहाने जाती,तब-तक खुद चाय पर रहती। ऐसा नहीं की उस घर में केवल वही है.एक उससे बडी और एक छोटी.पर उनके नखरे अलग.बडी को बीमारी के नाटक से फ़ुर्सत नहीं और छोटी का पति नहीं चाहता की वो कुछ करे.वो दोनों कहीं भी जा सकती थी.पर गंगा उसके तो सब मालिक हो जाते क्या बडे क्या छोटे.जरा भी कहीं जाना चाहती,घर मे भुचाल आ जाता ``तुम महारानी हो घूमने से फ़ुर्सत नही। नौकर नही है हम तुम्हारे.दिन भर ऐश करती हो कोई काम नहीं करती । उसके बच्चे ऐसी बातें सुनके दुखी होते। कहते माँ तुम भी कुछ बोलो.क्यों सुनती हो ? कभी तो बोलो। किन्तु उसकी आँखें बरसतीं हैं परंतु होठ मुस्कुराते और वो सिर झुका के काम में लग जाती। मैं अवाक होकर अपनी खिड़की से देखते हुए सोचती हूँ। ये तो होना ही है क्योंकि उमा एक " विधवा" है समाज में विधवा और उसकी जिन्दगी यहीं तो है। क्या बदलेगा, समाज क्या बदलेगी गंगा की ज़िन्दगी ?शायद हाँ मगर पहल गंगा को ही करनी होगी है न।
इंदु उपाध्याय (शिक्षिका-हिन्दी )समाज सेविका, लेखिका संत जोसफ कॉन्वेंट हाई स्कूल, बांकीपुर, पटना- 04
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