देखों  आया होली  मित्रो - विक्रम क्रांतिकारी

होली विशेष - 19

 

एक अजीब सी  खुशी और मस्ती का पल होता हैं होली के माह  आते ही पहले  हम होली पर्व  मनाने  के कारण  और इसके ऐतिहासिक मान्यता को जानते  हैं फिर हम आपको अपने बच्चपन के सारारत और मस्ती को लेकर बात करेगे मित्रो 

होली का त्यौहार मनाने के पीछे एक प्राचीन इतिहास है। प्राचीन समय में हिरण्यकश्यप नाम के एक असुर हुआ करता था। उसकी एक दुष्ट बहन थी जिसका नाम होलिका था। हिरण्यकश्यप स्वयं को भगवान मानता था। हिरण्यकश्यप के एक पुत्र थे जिसका नाम प्रह्लाद था। वे भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे। हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु के विरोधी था। उन्होंने प्रह्लाद को विष्णु की भक्ति करने से बहुत रोका। लेकिन प्रह्लाद ने उनकी एक भी बात नहीं सुनी। इससे नाराज़ होकर हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को जान से मारने का प्रयास किया। इसके लिए हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से मदद मांगी। क्योंकि होलिका को आग में न जलने का वरदान मिला हुआ था। उसके बाद होलिका प्रह्लाद को लेकर चिता में बैठ गई लेकिन जिस पर विष्णु की कृपा हो उसे क्या हो सकता है और प्रह्लाद आग में सुरक्षित बचे रहे जबकि होलिका उस आग में जल कर भस्म हो गई जो हम  सब स्कूल  समय  से पढते और सुनते  आये हैं मुझे आज भी  याद  हैं जब हम छोटे  बच्चे थे  तब दादा जी अपने कांधे पर लेकर रात मे होलिका दहन  देखने के  लिए ले जाते और हम सब भाई खूब मस्ती करते थे खूब रंग  से खेलते कोशिश करते की कोई भी  हम सब के घर के पास से बिना रंग के  भींगे ना निकले बहुत मस्ती करते हमसब पूरे  गली मे घुम घुम कर  होली के  गीत  गाते हुये रंग  एक दुसरे को लगाते निकलते सभी से प्यार और भाई चारा  रखते यही समय होता है रूठे  हुये को भी  मनाने का सबको  बोलते  रंग लगाकर  बुरा ना मानो होली हैं  गाँव  की होली सच में  बहुत अच्छी लगती हैं अब फिर कुछ  ऐतिहासिक बातो पर आते हैं जो मानव  को  मानव  से  प्यार करना  सिखाती  हैं होली l

यह कहानी ये बताती है कि बुराई पर अच्छाई की जीत अवश्य होती है। आज भी सभी लोग लकड़ी, घास और गोबर के ढ़ेर को रात में जलाकर होलिका दहन करते हैं और उसके अगले दिन सब लोग एक दूसरे को गुलाल, अबीर और तरह-तरह के रंग डालकर होली खेलते हैं। होली हर साल फाल्गुन महीने में मनाई जाती है। जैसे जैसे होली का त्योहार पास आता है हमारा उत्साह भी बढ़ता जाता है। होली सच्चे अर्थों में भारतीय संस्कृति का प्रतीक है, जिसके रंग अनेकता में एकता को दर्शाते हैं। लोग एक दूसरे को प्रेम-स्नेह की गुलाल लगाते हैं , सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, लोकगीत गाये जाते हैं और एक दूसरे का मुँह मीठा करवाते हैं।

भारत में होली का उत्सव अलग-अलग प्रदेशों में अलग अलग तरीके से मनाया जाता है। आज भी ब्रज की होली सारे देश के आकर्षण का बिंदु होती है। लठमार होली जो कि  बरसाने की है वो भी काफ़ी प्रसिद्ध है। इसमें पुरुष महिलाओं पर रंग डालते हैं और महिलाएँ पुरुषों को लाठियों तथा कपड़े के बनाए गए कोड़ों से मारती हैं। इसी तरह मथुरा और वृंदावन में भी 15 दिनों तक होली का पर्व मनाते हैं। कुमाऊँ की गीत बैठकी होती है जिसमें शास्त्रीय संगीत की गोष्ठियाँ होती हैं। होली के कई दिनों पहले यह सब शुरू हो जाता है। हरियाणा की धुलंडी में भाभी द्वारा देवर को सताए जाने की प्रथा प्रचलित है। विभिन्न देशों में बसे हुए प्रवासियों तथा धार्मिक संस्थाओं जैसे इस्कॉन या वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में अलग अलग तरीके से होली के शृंगार व उत्सव मनाया जाता है। जिसमें अनेक समानताएँ भी और अनेक भिन्नताएँ हैं देखा  जाये तो कही ना कही होली हमें ऊच  निच  जात पात  और धर्म  के भेदभाव  को दूर करती हैं सबको भाई  चारे  का संदेश  देती हैं जो इंसान को स्वेदनशिल बनाती हैं  गाँव मे एक अलग ही होली का नाजार होता हैं जहाँ सब एकजूठ होकर मस्ती करते शाम  को एक दुसरे घर जा कर गुलाल लगाकर   अर्शीवाद  लेते अपने बड़ो  से और छोटो को गुलाल लगाकर प्यार देते काश बच्चपन  की होली फिर आ जाये ll.

 

अच्छा हुआ दोस्त जो तूने होली पर रंग लगा कर हंसा दिया

वरना अपने चेहरे का रंग तो महंगाई ने कब का उड़ा दिया 👏👏💪👩🎤

 

कवि विक्रम क्रांतिकारी (विक्रम चौरसिया)

 दिल्ली विश्वविद्यालय / IAS aspirant

 


05 अप्रैल 2020 को महिला उत्‍थान दिवस पर आयो‍जित
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