होली विशेष -36
दिलों को जैसे जोड़ता शब्द होली अनेकों यादें जुड़ी हैं मेरी होली से उन्हीं में से एक कुछ कड़वी तो है मगर कहते हैं किसी को दिल की बात बता दो तो बोझ हल्का हो जाता है। यू तो होली रंग बिरंगा त्यौहार है मगर मुझे बिल्कुल पसंद नहीं। जहां तक याद आता है 10 साल की होगी मैं तब जब मेरे पापा का इसी दिन बहुत बुरा एक्सीडेंट हुआ था। जब वह घर से अपने कुछ दोस्तों के साथ जा रहे थे रास्ते में एक ट्रक से उनकी गाड़ी टकरा गई सिर पर गहरी चोट आई बाकी दोस्त तो सलामत थे मगर मेरे पापा को महीनों हॉस्पिटल में गुजारने पड़े वह तो गनीमत है की उनकी जान बच गई उस दिन से जैसे होली से मुझे चिड़ सी हो गई। और मैंने कसम खा ली की मैं कभी होली नहीं खेलूंगी और एक अंजाना सा डर मेरे दिल में होली को लेकर बैठ गया। पापा तो ठीक हो गए और सब कुछ पहले जैसा हो गया।
और फिर कुछ सालों बाद इत्तेफाक देखिए मेरी शादी के बाद भी पहला त्यौहार ससुराल में होली का ही था नए घर में बहुत मुश्किल होता है अपनी भावनाओं को किसी को समझाना मगर जब मेरे ससुराल मैं सबको पता लगा कि मैं होली नहीं खेलती और डर के मारे ही मुझे बुखार आ जाता है तब मेरे सभी परिवारजनों ने मेरी भावनाओं का आदर किया और किसी ने मुझे छुआ तक नहीं। मगर आज मैं 41 साल की हो चुकी हूं मगर आज भी होली के त्यौहार की तारीख मुझे डराती है ना जाने शायद मैं कभी इस डर से आजाद हो भी जाऊं मगर होली अपनी रंग बिरंगी खुशियों को बिखेरते हुए हमेशा इसी तरह हर साल आता है और आता रहेगा। मेरे सभी प्रिय जनों को मेरी ओर से होली की मीठी गुजिया, गुलाल से भरी थाल और पिचकारी की फुहार वाली ढेरों शुभकामनाएं
शिल्पा अरोड़ा
विदिशा मध्यप्रदेश
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