गंगा महिम रचनाकार संख्या 93
गज़ल
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गंगा यमुना की पानी है
प्रकृति की ये रानी है
हम सबके पापों को धोती
सबने ये खुब जानी है
मैली होती सुनते है हम
करते अपनी मनमानी है
दूषित जल गंगा माता का
स्वच्छ करने की ठानी है
आओ मिलकर वादा कर लें
अब ये "कांता "की वाणी है
राजकांता राज
पटना (बिहार)
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