एक रंग ऐसा भी - वंदना

होली विशेष



आज रागिनी बहुत ही खुश नजर आ रही थी. विक्की आज अपनी पत्नी के साथ घर आ रहा था.उन दोनों के पसंद के पकवान बनाने में व्यस्त रागिनी आज फिर अपनी दवाई लेना भूल गई थी. लेकिन बच्चो के आना  उसे इतनी सुखद अनुभूतियां दे रहा था. कि वह अपनी ही धुन में मगन होकर फटाफट सारा काम निपटा रही थी.कभी काम न करने वाले उमेश भी आज उसकी हर कही बात को मानकर रहे थें.वह नहीं चाहते थे,कि उनकी बहू को दो दिनों में कोई समस्या हो!तभी भी डोर बेल बजी.... रागिनी ने दरवाजा खोला.., तो सामने शर्मा जी खड़े थे!उन्हें देखते ही रागिनी का मूड ऑफ हो गया. वक्त बेवक्त आकर उमेश के साथ बैठकर घंटों बतियाते और उमेश चाय पे चाय बनवाते नहीं थकते। यह उनकी रोज की दिनचर्या थी. रागिनी खींझते हुए मन ही मन सोच रही थी.इन्हें अभी दो-तीन दिन घर आने से मना कर दू.लेकिन वह कुछ ना कर सकी।
और उन्हें अंदर आने को कहकर  किचन की ओर भागी। हमेशा सुस्त सी रहने वाली रागिनी को इतनी चुस्त-दुरुस्त देखकर शर्मा जी आश्चर्यचकित हो गए। उमेश से पूछ बैठे... , "कि आज भाभी जी ने कौन सी ऐसी धूटी पी ली है..? जो गाड़ी दस की स्पीड में दौड़ पाती थी...., आज अस्सी की स्पीड में भाग नहीं है. उमेश हंसते हुए. अरे..,"आज दोनों बच्चे आ रहे हैं.दो दिनों से होली की तैयारी चल रही हैं।पकवानो से घर महक रहा था।इन दो दिनों में शर्मा जी को आना उचित नहीं लगा। तो वह नहीं आये वह अकेले ही रहते थे.तो काहे का त्यौहार।विक्की रागिनी से बोला मम्मी आप हमेशा फोन पर पापा के दोस्त की बुराई करते नहीं थकती थी..,की वह आकर बैठ जाते हैं। कहां है वह पापा  के दोस्त..?मुझे तो यहां पापा का कोई दोस्त नहीं दिखाई दिया..?उमेश का मन अपने दोस्त के लिए विचलित हो उठा।"सुनो रागिनी..., शर्मा जी को भी बुला लो बेचारे अकेले होंगे, रागिनी तुनक कर बोली.., "क्या जरूरत है....कल से रोज ही आ जाएंगे दो दिन तो मुझे बच्चों के साथ गुजारने दो! उमेश रागिनी की बात सुन उदास हो गया। विक्की समझ गया। कि पापा को दवाई से ज्यादा दोस्त की आवश्यकता है।उसने  देखा की टेबल पर कुछ दवाइयां पड़ी हुई थी।उन्हें देख विक्की पूछ बैठा..,"पापा यह दवाइयां किसकी है..? बेटा यह  दवाइयां  मेरी नही है। उमेश दवाइयां देख..रागिनी से बोले..," तीन दिनों से दवाई क्यों नहीं खाई...? ऐसा कौन सा काम था।की तुम्हे  दवाई लेने का समय नहीं मिला। बच्चों के आने की खुशी में रागिनी अपनी अकेलेपन की स्थिति को भूल चुकी थी. जो रागिनी किसी बात नहीं करती थी.ओर उमेश ओर शर्मा जी के हंसी-मजाक के किस्से सुन कुढ़ती रहती थी.और बीमार हो गई थी। विक्की मां से बोला...,"पापा के दोस्त शर्मा जी को भी बुला लो अकेले हैं बेचारे, और वैसे भी होली का त्यौहार तो मिलजुल कर ही मनाया जाता है, देखो पापा कितने उदास लग रहे हैं।शर्मा जी उनके खास दोस्त है..उन्हें हम बुला लेते हैं. रागिनी का उखड़ा मूड देख विक्की रागिनी की ओर देखकर बोला.."आपको पापा से क्या प्रॉब्लम है..?आप भी कोई अपनी सहेली बना लो  जो आपके साथ अपने सुख -दुख बाट सके..विक्की ने देखा कि होली के दिन पापा बेमन से नजर आ रहे थे। पकवानों से टेबल भरी  पड़ी थी.पर उनका मन बेचैन हो रहा था.विक्की सब समझ गया।वह शर्मा जी के घर जाकर उन्हें अपने साथ यह आग्रह कर बुला लाया की.आजआप हमारे साथी ही भोजन कर होली मनाएंगे।शर्मा  जी तुरंत तैयार हो गए। विक्की के साथ शर्मा जी को आते देख रागिनी मन मसोसकर  उन्हें देख रही थी. मगर दो पल में  अपने पति के चेहरे की खुशी देख पति के मन के रंग को पहचान कर मुस्कुरा हुए बड़े आत्मीयता से शर्मा जी का स्वागत करने लगी।आज वह बिना दवाइयों के भी स्वस्थ नजर आ रही थी.अब रागिनी के  मन का रोग गायब हो चुका था. मन के विचारों में एक ऐसा रंग भी नजर आया जो सब रंगों से ऊपर था. शर्मा जी रागिनी का यह व्यवहार देख दंग रह गए।रंगों से भरी थाली उठाकर शर्मा जी की और बढ़ते हुए रागिनी यह बोली....," यह लीजिए भाई साहब.. आप उमेश को जितना चाहे रंग लगा दे.., कि यह दोस्ती का रंग जीवन भर ना छूटे. उमेश ने रागिनी के हाथों से रंगों की थाली लेकर शर्मा जी के ऊपर उड़ेल दी. दोस्ती और प्रेम का यह रंग देख रागिनी मुस्कुराहट दुगनी हो गई।


 


 वंदना पुणतांबेकर
               इंदौर 


 


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