होली विशेष
मारी हमारे घर में कई सालों पहले नियुक्त एक दस साल की छोटी सहायक थी जो मेरी नवजात शिशु की देखभाल करने में मेरी मदद कर सकती थी। उसकी मां गुजर चुकी थी और मजदूर बने उसके पिता को उसे घर में अकेले छोड़ काम पर जाना मुश्किल महसूस हो रहा था, सो जब उन्हंे मालूम पड़ा कि हम एक सहायक की खोज में हैं तो उन्होंने दिन भर हमारे यहां छोड़ने का निश्चय किया ताकि आम के आम, गुठली के दाम भी मिले! मेरी बच्ची के लिए जो ढेर सारे खिलौने भेंट में आए, उनसे मारी रोती बच्ची का मन बहलाती और चुप कराती। उसे स्कूल जाने या शिक्षा ग्रहण करने की कोई इच्छा न थी, फिर भी मैं उसे फुर्सत के समय कुछ पढाने-सिखाने की कोशिश करती ताकि उसके लिए काला अक्षर भैंस बराबर न हो!
संयोगवश मेरे देवर की शादी तय हुई थी और हम सब शादी की सारी तैयारियां करने में व्यस्त थे। ऐसे समय में मारी खूब काम आई। उसके रहते मेरी बच्ची को अकेले छोड़ काम में व्यस्त होने की नौबत कदापि न आती और मैं आराम से अपना सारा काम कर पाती। शादी के लिए सब के नए कपड़े खरीदे गए और मारी को भी उसका ड्रेस पसंद आया।
ऐन मौके पर हम सब अपना नया ड्रेस पहनकर मंडप को दूल्हा सहित वैन में प्रस्थान हुए। मंडप पहुंचते ही हम सब इतने व्यस्त हो गए कि किसी को भूख-प्यास की याद तक न आई। देर रात तक सब जगे रहे और बैंड-बाजे की आवाज़ के साथ-साथ सारी रस्में चल रही थीं। अगले दिन प्रातःकाल शुभमुहूर्त था जिसका सब बड़े बेताब से इंतज़ार कर रहे थे। सुबह के नौ बजे तक जब शुभमुहूर्त संपन्न हो चुका था तो तब जाकर सबने चैन की सांस ली। मेरी बच्ची को हर कोई पहली बार देख रहा था, और मैं पाती कि वह किसी न किसी रिश्तेदार की गोदी में होती और वे बड़े प्यार से उससे खेल रहे होते।
अचानक मुझे मारी की याद आई। मैंने पाया कि मेरी बच्ची के साथ हमेशा पाई जाती मारी काफी समय से कहीं नहीं दिख रही थी। इतने बड़े मंडप में उसे ढूंढना भी मुश्किल था। इसलिए मैं हर किसी से पूछने लगी कि यदि उन्होंने मारी को देखा पर हर किसी ने ‘नहीं’ का जवाब ही दिया। अब मुझे चिंता सताने लगी कि आखिर मारी कहां गई होगी! किसी दूर के रिश्तेदार ने सलाह दी कि हम पुलिस को सूचित करें। पर हम बात का बतंगड़ नहीं बनाना चाहते थे और हमें इससे परहेज थी। फिर भी हमने उसे ढूंढने की पुरजोर कोशिश की। मंडप के मैनेजर और उनके सेवकों की सहायता से हमने मंडप का चप्पा-चप्पा ढूंढा और आखिर हमारी मेहनत फल लाई। एक कर्मचारी ने पाया कि मारी एक खाठ के नीचे सारी हलचल से अनभिज्ञ आराम से ऊंघ रही थी। जब उसे जगाया गया तो वह ऐसे उठी जैसे उसे किसी ने उसकी गहरी नींद को भंग कर दिया हो। चार-पांच तनावपूर्ण घंटों के बाद जब हमें सूचना मिली कि मारी मिल गई है तो हमारी जान मंे जान आई। आखिर पुलिस की चक्कर में पड़ने की नौबत न आई और भगवान की कृपा से इन सारी झंझटों से बच गए।
रात भर हमारे संग ही जगी रही मारी जैसी छोटी बच्ची का थक जाना स्वाभाविक था, अतः उसे किसी ने भी डांटना ठीक न समझा। जब हमने उसे सारी कहानी बताई तो वह बड़ी मासूमियत से खूब हंसने लगी। उसे सब कुछ मज़ाक लग रहा था!
मेरी बेटी बड़ी हो गई और स्थितियां बदली तो मारी अपने घर चली गई। पर मारी की यह घटना हमारे लिए चिरस्मरणीय बन गई।
डाॅ.जमुना कृष्णराज,चेन्नई
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