गंगा हमारी आस्था - डॉ.शिवानी

रचनाकार संख्‍या -97 मिशन गंगा


हिम से हिमगिरि आई गंगा।
है कितनी सुखदायी गंगा।


कलकल करती बहती रहती,
बजा रही शहनाई गंगा।


शीतल निर्मल पावन हो कर
घाटी मे लहराई गंगा।


मन विभोर करती हरियाली
सुन्दर रूप सजाई गंगा।


हिरद्वारे से चली मटकती 
प्रभु की है परछाई गंगा।


पावन कर देती है सबको
जाने कहाँ नहाई गंगा।


पाप धरा पर ढोते ढोते 
है कितनी मुरझाई गंगा।


मैले आँचल से तन ढाँपे
जैसे बहुत लजाई गंगा।


कुछ तो सोचों दुनियाँ वालो
क्यों इतनी कुम्हलाई गंगा।


सबके कष्ट मिटाने वाली
खुद ही कलुष उठाई गंगा।।


©डॉ.शिवानी सिंह


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