गंगा क्यों मैली-अनुपम आलोक

मिशन गंगा -98


 


देवनदी, मंदाकिनी, विष्णुपदी, माँ गंग ।
सुरसरि ,त्रयपथगामनी , पावन जलधि तरंग ।।


सुरधुनि, सुरसरि, सुरपगा, शोभित शिव के शीश ।
पतित पावनी जाह्नवी, धरती की जगदीश ।।


तीन लोक तेरह भुवन तैंतिस कोटि सुजान ।
विष्णुपगा के घाट पर आये खुद भगवान ।।


गंगा क्यों मैली हुई, लुप्त हो रही धार ।
चिंता चिंतन कीजिए, खोल हृदय के द्वार ।।


चिंतन अंधा हो गया, पंगु हुए सर्वज्ञ ।
बाँध बनाकर छल रहे, गंगा को मर्मज्ञ ।।


कौन सत्य आकर गहे , बिका जहाँ ईमान ।
कागज पर पावन हुआ, शुचि गंगा अभियान ।।


आयी थी सुरसरि..धरा, हरने को संताप ।
खुद ही मैली हो गयी, धोते-धोते पाप ।।


धवल चाँदनी  रेत  पर,  नीर क्षीर सो धाम ।
गंग-चंद्र लखि यामिनी ,कौतुक ललित ललाम ।।


शांत, सौम्य सलिला बहै, तैरत दीप ललाम ।
छवि रजनी लखि गंग की ,अंतस करै प्रणाम ।।
                                         
निर्मल गंगा का चला, भागीरथी प्रयास ।
 मैली की मैली रही , पतित पावनी खास ।।


 (अनुपम आलोक)
बांगरमऊ - उन्नाव (उत्तर प्रदेश)




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