माधुरी का निश्चल प्रेम

प्रेम फरवरी


प्रेम 
निश्छल बन्धन
प्रिये!देखी थी तेरी एक झलक इन हसीन वादियों में,
समा गई थी तेरी वो मासूमियत ,दिल की गहराइयों में।


ईश्वर की बनाई अनुपम रचना सी तुम,
वीणा के तार झंकृत कर प्रेमसुधा रस बरसाती सी तुम।


देख तुम्हारी वह अनुपम छवि ,रग-रग मेंउत्साह भरा था,
जीवन में आगे बढ़ने का संचार , नई तरंगों सङ्ग हुआ था।


न कर सका कभी इज़हार बेरहम ज़माने के डर से,
दिल की गहराइयों में बसा लिया तुमकोप्रेमकी मूरत समझ के


तेरी वो निश्छल प्यार छलकाती हिरणी सी आँखें,
लुभाती रहीं मुझको मेरे दिल के महख़ाने में।


न था डर कभी भी अपने लिए,
डरता था कोई उँगली न उठा दे ,तेरे बेदाग घराने में।
खिलते हैं जब-जब फूल बुराँस के, इन हसीन वादियों में।
मिलने की फिर जग जाती है आस मेरे दिल के महखाने में।


पहुँचती तो होगी मेरे निष्पाप प्रेम से पगी तरंगें तेरे सीने में,
आती होगी हिचकी तुझे,तेरे दिल के किसी कोने में।


घूमता हूँ अक्सर हसरत लिए तेरे मिलने की इन वादियों में, 
गुनगुनाता हूँ गीत उस प्यारी सी झलक की मधुर यादों में।


जनता हूँ मैं,है पाक अमानत तू किसी की,
प्रिये!न धिक्कारना मुझे,नहीं चाहा ग़लत तुझसे कभी भी।


तुम्हारे सुख-सौभाग्य केलिए करता हूँ नित प्रार्थना,
है आश,तुम समझ सकोगी मेरे दिल मि ये भावना।


है प्रेम मेरा,ईश्वर की ईबादत की तरह तेरे लिए,
बस एक बार ! आना तुमज़रूर इन वादियों में मेरे लिए।


माधुरी भट्ट, पटना


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