होली का रंग-डा0 हंसा शुक्‍ला

होली विशेष



बचपन से ही मुझे होली का त्योहार बहुत अच्छा लगता था लोगों के रंग-बिरंगे चेहरे मुझे आकर्षित करते थे उन्हें देखकर मेरी एक ही इच्छा होती थी कि मैं खूब रंग खेलु।मेरी यह छोटी सी इच्छा भी भगवान ने पूरी नही की,हम तीन बहने थी और  जहाँ हम  रहते थे वहाँ केवल दो घर था एक हमारा और एक डॉक्टर आंटी का। आंटी के बेटे कॉलेज में थे और हम तीन बहने क्रमशः पहली,तीसरी और पांचवी  क्लास में थे इसलिए उनके साथ होली खेलने का सोच भी नही सकते थे,तीनों बहने ही एक-दूसरे पर रंग डालकर खुश हो जाते थे।मम्मी -पापा होली नही खेलते थे इसलिए घर में दो-तीन रंग के गुलाल और एक डिब्बा चूडिरंग पानी मे मिलाने के लिए आता था।हम एक दूसरे के चेहरे को गुलाल के अलग अलग रंग से सजा देते थे,और टब में बने रंगीन पानी को एक दूसरे के ऊपर पिचकारी से डालकर खुश हो जाते थे।शायद इस होली से दोनों बहनें खुश थी पर मुझे तो पक्की होली खेलने का मन करता था पर कहु तो किससे  दोनो बहने तो पहले मुझे पागल बोलती थी कि कौन पक्के रंग की होली खेलकर अपना हाथ मुँह   खराब करें?  इस रंग से भी हमे सुरक्षित रखने के लिए माँ सवेरे से हमें नारियल तेल का रक्षा कवच पहना देती थी,जो मेरे रंगे रहने की हसरत पर  तुषारापात करती थी।मैं सड़क पर आने-जाने वाली टोली को रंग-बिरंगे रंग में रंगा देखती तो मन करता काश हम भी ऐसी होली खेलते। समय तो चलते जाता है हैम भी कॉलेज पहुँच गए लगा अब बड़े हो गए हैं सहेलियों के साथ खूब होली खेलेगें,जब सड़क पर हमारी टोली जाएगी तो लोग देखते रह जाएंगे।मेरी फूटी किस्मत की मेरी कोई भी सहेली होली नही खेलती थी,टोली में जाना तो दूर की बात वो घर से नही निकलती थी।फुफेरे भाई की शादी के बाद मैं बहुत खुश थी कि भाभी के साथ खूब होली खेलूंगी पर मेरा और होली का 36 का आंकड़ा था ।भाभी के साथ होली खेलने बुवा के घर  गई बुवा ने बाकी बातो के साथ हिदायत दी कि तेरी भाभी को जयादा रंग मत लगाना वरना छुटकी की तबियत खराब हो जाएगी।तीन साल में भाभी की दो बिटिया हो गई इस दौरान होली के नाम पर केवल टीके से कम चला। मेरी दोनो बहनो की शादी हो गई मैं अकेली रह गई अब भाभी  की एक बिटिया आठ साल की और दूसरी पांच साल की थी ।फिर मन में उम्मीद की भतीजियों के साथ मनभर होली खेलूंगी।होली के साजो समान के साथ बुवा के घर पहुच गई,


होली के दिन सवेरे भाभी ने प्यार  से कहा दो दिन बाद बड़ी की परीक्षा है और छोटी तो छोटी ही है इसलिये इन्हें जयादा रंग मत लगाना।भाभी का प्यार से बोला यह वाक्य मेरे कान में गरम शीशे की तरह पिघल रहा था। मेरी शादी भी हो गई मैन में एक आशा की किरण कि अपने पति के साथ होली खेलूंगी अब जाकर मेरे बचपन की इच्छा पूरी होगी सोचकर ही बहुत खुश थी। होली के दो डॉन पहले बाजार से पक्का रंग मुखोटा और बैलून ले आई,लेकिन कहते है ना किस्मत खराब हो तो ऊँट के ऊपर बैठे आदमी को कुत्ता काट लेता है वही हाल मेरा था  होलिका दहन  के बाद घर आई तो शरीर मे दर्द और कंपकंपी डॉक्टर ने कहा वायरल है रंग बिल्कुल मत खेलना वार्ना तबियत और बिगड़ जाएगी।डॉक्टर जाने के बाद भगवान के पास जाकर मैंने प्रतिज्ञा ली अब कभी होली खेलने के बारे में सोचूंगी नही केवल शगुन का टीका ही लगवाऊंगी।वक्त के साथ बीटा 25 साल का हो गया उसकी शादी हुई और बहू को पहिली होली में मायके जाने से रोक ली और प्यार से समझाया कल बेटे के साथ उसके सब दोस्तों के घर जाना और खूब होली खेलना ये मेरे बचपन की इच्छा है।सवेरे बेटा बहु मुझे टीका लगाकर मेरे आदेश का पालन करते हुवे होली खेलने चले गये।मैं खाना बनाकर दोनो का इंतज़ार कर रही थी गाड़ी की आवाज से दरवाजे पर गई बहु को रंग में सरोबार देख मैं बहुत खुश थी कि देर से सही मेरे होली खेलने की इच्छा बहु के होली खेलने से पूरी तो हुई ।।


बहु खुश थी कि कितनी अच्छी सासूमाँ मिली है जो मेरे होली खेलने में खुश है मैंने बहु को गले लगाकर आशीर्वाद दिया हमेशा खुश रहो और हर साल ऐसे ही होली खेलना।


 


डा0 हंसा शुक्‍ला
भिलाई


 


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