होली में-सारिका

होली विशेष -39


 


इस होली में ......
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चलो .....
आज सारे ग़म भुलाकर
खुशियां मनाते हैं
क्या खोया , क्या पाया
सब भुलाकर
गले लगाते हैं
बहुतों को मैं पसंद नहीं 
चलो ......
आज उनकी नापसंद को
अपनी पसंद बनाते हैं
कई रंग बदरंग हुए
चलो ....
उन बदरंगों को
एक - एक कर अपनाते हैं
धवल वसन को भी
रंगों का चमन बनाते हैं 
चलो .....
टुकड़ों में बंटी ज़िन्दगी को
समेटकर
आज इस होली में
प्रेम के रंग चढ़ाते हैं 
चलो ......
छोटी सी इस ज़िन्दगी में
कुछ बड़ा करने की
अपनी किस्मत आजमाते हैं


सारिका भूषण
कवयित्री एवं लेखिका


 


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