होली विशेष -37
होली के माहौल में चढ़ा
मुझे अलग की रंग
मन में आया यही ख्याल
इस बार खेलूंगा में होली
पड़ोसन के संग ।।
यह सोचकर मेरे मन में
खुशी की लहर, दौड़ी
सोचा मैंने
भांग खा ली जाए थोड़ी-थोड़ी
भांग के नशे में
किया मैंने पड़ोसन को हाय
हाथ में जो कलर था
दिया उसे लगाए ।।
कलर लगाती वह मुझे बोली
हैप्पी होली भैया, हैप्पी होली भैया
कहां हैं आप की परिवार की टोली ।।
भैया उसके बोलते ही
मेरा दिमाग घुमा
न जाने ख्यालों ही ख्यालाे में
कितनी बार
इन गालो को मैंने है चुमा ।।
पर भैया के बोल ने
लगाया मुझे 440 वोल्ट का करंट
मन ही मन सोच लिया मैंने
आज तो बता ही दुं इसे
तुमको दिल से चाहने वाले हैं हम ।।
कहा मैंने
छोड़िए न भैया कहने वाली बात
हम उम्र ही हम दोनों
आओ करें दोस्ती वाली बात ।।
इतना कहते ही उसकी भाैहे चढ़ी
उसके तेवर को देखकर
आया दिल में यही ख्याल
आज तो बाबू
तेरी होने वाली
पक्की ऐसी की तैसी ।।
उसने मीठी वाणी में
कुछ फरमाया
भंग के नशे से
थोड़ा होश में मैं आया ।।
आपने जो भी मुझे समझ कर लगाया मुझे रंग
मैं तो पड़ोसी के नाते
इस खुशी में हो गई आपके संग ।।
यह त्यौहार सिखाता हमें
ना रखे मन में कपट,
बैर ,दुराचार
घर हो या पड़ोसी
रखे सभी से सदाचार ।।
इतने में ही
श्रीमती जी की खूंखार आवाज आई
उठो, उठो
बहुत हो गई आराम फरमाई
मैंने कहा पगली
डाला तूने मेरे सपने के रंग में भंग
पड़ोसन से सीख रहा था मैं
शिष्टाचार, सदाचार के
कैसे होते सतरंगी रंग
कैसे हाेते सप्तरंगी रंग ।।
सतीश लाखाेटिया
नागपुर ( महाराष्ट्र)
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