संस्मरण होली
होली की आते ही मुझे याद आ जाती है ,अपने माएके मे बचपन मे खेली गई होली जो रंगो के साथ गीत संगीत के साथ मनाते थे ।घर मे बडा आगन होने का फ़ायदा भी खूब होता है ।घर लखनऊ के हुसैंनगंज मुहल्ले मे हमारा घर ही ऐसा था जहाँ साथ भाई और साथ बहुवे थी और 24 बच्चे तो परिवार भी भरा पूरा था ।घर। के सामने ही जो हम बहुत बाद मे जान सके अकाशवाणी के प्रसिद्ध नौटंकी क्लाकार , लेखक उर्मिल कुमार थपलियाल जी रहते है ।जिनसे मिलने बहुत क्लाकार लोग आते है । सामने रहने और हमारे घर की बडी जगह को सबने रिहरसल की जगह बना लिया ।होली मे सब एकत्र हो जाते ।घर की नाली को बंद क्रर दिया जाता पूरा अंगन पानी से भर कर रंग मिला दिया जाता था ।फिर शुरु। होता था ।मा और चाचियो के संग रंग का हुडदंग ।कोई ढोलक बजाता,कोई ढपली ,कोई मंजीरा ,झांझ,होली गीत संगीत ,के संग मनोहारि नृत्य और रंग भरे आगन मे हम सब की मस्ती और गुझियो के स्वाद नही बिसरते । उस पर दादीजी की बनाई गई खोये और भन्ग की मिठाई के सभी दिवाने थे । माताजी, दादी जी आज साथ नही है उनकी यादे हमेशा लोगो के दिल को खुशी से भर देती है ।
ज्योति किरण रतन , लखनऊ उत्तर प्रदेश
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