दुनिया कहती विकलांग हमें
दयालु दृष्टि से निहारती हमें
कोई हिकारत से भी देखता है
देख नाक भौं सिकोड़ता है
अपंगता अपनी खुशी से नहीं
ये तो प्रारब्ध कर्मों का खेल है
ना करना अपमान किसी का
कर्मफल से मिलता ये मेल है
दिल में हमारे भरे अहसास
उगते सूरज से लेते हैं प्रेरणा
जीवन्त प्रकृति के रचते चित्र
नौनिहाल भी हमसे होते प्रेरित
भावनाओं का दिल में समुन्दर
ह्रदय में आशाओं का भरा ज्वार
यदि नहीं हैं हाथ तो क्या हुआ
ह्रदय में जोश का अदम्य प्रसार
तूलिका नित नवल चित्र रचती
पैरों से हाथों का काम है लेती
ह्रदय स्पन्दित उमंग तरंगों को
रंगीले चित्रों में साकार कर देती
हम ना किसी पर बोझ हैं
स्वयं हुनर की अद्भुत खोज हैं
होंसलों को मिली है उड़ान
सार्थक कदमों के संग हैं निशान
कल्पनाओं के कलाकार हम
यूँ व्यर्थ समय नहीं खोते हम
बहुमूल्य समय का कर उपयोग
प्रेरणाप्रद चितेरे बनेंगे हम ।
✍ सीमा गर्ग मंजरी
मेरी स्वरचित रचना
मेरठ
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