ख्वाबों की होली-मधु

होली विशेष -23


मैंने तेरे संग खेली ख़्वाबों की होली, 
दिल की बात अब तक मैंने तुमसे नहीं है बोली। 


             कोई रंग न लगाया 
             कोई गुलाल न उड़ाया
             मनमोहक ये रूप तेरा
             मैंने मन में है सजाया। 


मेरी ख़्वाबों से निकलो बाहर आ जाओ खेले होली, 
दिल की बात अब तक मैंने तुमसे नहीं है बोली। 


       गुलाल तो बस एक बहाना है
       हमें उनके करीब जाना है
       हम तो कब के रंग चुके हैं
       प्रेम में उनके ढल चुके हैं
       और देखो ना!
       अब तो हमारे नयन भी
        झुके-झुके है। 


रंगों ने भर दी, मेरी चाहत की झोली, 
मेरे ख़्वाबों से निकलो बाहर आ जाओ खेले होली, 
दिल की बात अब तक मैंने तुमसे नहीं है बोली। 


      जवानी दीवानी मस्तानी होकर
      रवानी के पड़ाव पर है
      चारों ओर रंगों की फिज़ा है
      इस शाम में अजीब सा ठहराव है
      दूरियाँ दिल की मिटे  हर कहीं अनुराग हो
      न द्वेष हो न राग हो, ऐसा हमारा फाग हो। 


जुबां ने राज़ ए बयाँ किया,बन गई इश्क़ की मीठी बोली, 
ख़्वाब, ख़्वाहिश हक़ीक़त बन गई हमजोली, 
इक दूजे के मुकद्दर की इंद्रधनुष सी सजी रंगोली, 
आ जाओ खेले होली,यही तो है प्यार की बोली। 


फाल्गुन की छटा,खुशियों की डोली है, 
तेरी मेरी रंग भंग हुड़दंग हँसी ठिठोली है, 
मस्ती में झूम रही आज हर तरफ टोली है, 
होली है भई होली है, बुरा ना मानो होली है।


मधु भूतड़ा
गुलाबी नगरी जयपुर से


 


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