क्यों छोड़ गये अधूरा-शुचि 'भावि''

प्रेम फरवरी


पूरा ले गये होते मुझको
कुछ अधूरा क्यों छोड़ गये,
मखमली एहसास की
एक कड़ी क्यों जोड़ गये,
अधूरापन बरकरार रहे हमेशा
तेरा ही इंतज़ार रहे अब हमेशा,
ख़्वाबों में यूँ मगर छेड़ा न करो 
वरना
क़ैद-ए-मुहब्बत की सज़ा मिलेगी
मंज़िल तुम थे, हो और रहोगे भी
रास्तों की भयावहता का डर किसे
सुनो
चुपचाप से
पलकों में छुप जाना यूँ तुम्हारा
और मेरे गालों की लाली में उतर आना
अच्छा लगता है मुझे
और अच्छा लगता है
तुम सँग पूरी होकर भी
अधूरा रहना,,,,,,,


शुचि 'भवि'
भिलाई,छत्तीसगढ़
02.02.2020


 



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