मन पीड़ा से तड़प रहा है-पारसनाथ

प्रेमगीत फरवरी


मन पीड़ा से तड़प रहा है
देख स्वयं की तन्हाई !
देख मुझे ये विस्मय होता
नियति नटी की निठुराई !
मन पीड़ा -------------------


दुखिया मन को विरहा के क्षण
पीड़ा से तड़पाते हैं !
दर्द हमारे आँसू बनकर
धरती पर गिर जाते हैं !
शब्दों में अभिव्यक्ति करें क्या 
अपने मन की कठिनाई !
मन पीड़ा -------------------


यादों का हर इक पल मुझको
सूनेपन में समझाता !
फूल शूल सम चुभने लगते
अपना कोई जब जाता !
अब तक थे वो मेरे अपने
आज पीर भी हुई पराई !
मन पीड़ा ------------------


शोकाकुल था हृदय हमारा
तभी किसी ने कुछ गाया !
मधुर भ्रान्ति की सुस्मृतियों में
मानस मेरा लहराया !
गीत में इतना दर्द भरा था
खूब हसी अपनी तरुणाई !
मन पीड़ा--------------------



रचना --- पारसनाथ श्रीवास्तव, नाथपुरम बस्ती (उ.प्र.)



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