प्रेम फरवरी
मेरा प्यार तुम हो
मेरा अहसास तुम हो
मेरा अहंकार भी तुम ही हो
कुछ तो खाशियत है,
तुममे ,जो तुमसे जुदा
में हो ना सकी।।
तेरे वजूद में है
इतनी रुमानियत
तेरे वजूद में है
इतनी खुमारियत
सच सामने होकर भी
खुद को जुदा ना
में कर सकी।।
काश की यह पल
योंही ठहर जाए
तुझको में अपनी
तन्हाइयोमें समेट लू
इस कदर तेरे चाहने
पर भी जुदा नाहो सकी।।
आखो के कोर में
छुपी हुई है यादे
बह ना सकी
दिल ही दिल मे
तड़प बनी रही
दूर होकर भी तुमसे
जुदा ना हो सकी।।
कैसे कहु में तुम्हे
भीड़ में रहकर भी
तेरे बिना तन्हा रह गयी
कैसे हो जाऊं में
जुदा तुमसे ,चाहकर
भी ना हो पाई।।
स्वरचित - माधुरी शुक्ला कोटा
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