मेरे ख्बाबों को-नेहा

प्रेम फरवरी


देखा  करती थी तुम्हें झरोखे से
अपने सच्चे प्यार के भरोसे से
 कभी तुम दिख जाया करते थे 
तो देख तुम्हें सपने संजोती थी 
मेरे ख्बाबों को तुम्हारे दिल के 
किसी कोने में मिल जाए पनाह
कभी कभी सोचा करती थी कि 
बाते करती रहूँ बैठ कर तुमसे 
बनाकर के तुम्हारी एक तस्वीर 
सजा लूँ अपनी आँखों की कोर में
जब तुम्हारा कोई जवाब न मिलता 
तब छलक जाता था नीर आंखों से
पाकर तुम्हें सब कुछ पा लिया मैंने 
दुनियाँ की हर खुशी मिले तुम्हें
देखकर अपने इतना नजदीक मैं
सोचती हूँ कहीं यह ख्बाब तो नहीं
देखो आज मैं तुम्हें नहीं चाहती हूँ
तुम्हारी याद में न रोना चाहती हूँ 
जब तक जिंदगी है में तुम्हारे साथ
रहूंगी बस इसी तरह तेरी पनाह में
चाहती हूँ प्यार का जो ख्बाब देखा है
उसे सच होते हुए देखना सुनो!.सच में                  


  नेहा शर्मा विदिशा मध्‍यप्रदेश



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