होली विशेष-
जिंदगी के सफ़र में बहुत सारे अनुभव होते हैं हर उम्र हर पड़ाव पर नई नई सोंच और संघर्ष के साथ आगे बढ़ कर चलते रहना हीं जिन्दगी है ।जाने अनजाने से मिलना साथ रहना कुछ अपनी कहना और दूसरों की सुनना ये चलता ही रहता है ।एक गाना याद आ गया "जिंदगी एक सफ़र है सुहाना,यहाँ कल क्या हो किसने जाना ।मेरी शादी हुई ससुराल आई और मेरी पहली होली मुझे आज तक याद है मेरे आने के एक साप्ताह बाद होली था मैं अपने घर में सबसे बड़ी बहू थी पूरा परिवार साथ रहते थे सबका प्यार भी मुझे मिला ।मेरे ससुराल का नियम है कि नई बहू से छह महीना खाना नहीं बनवाया जाता है इसलिए मेरी सासु माँ मुझपर भी नियम का पालन करने लगी । होली के के चार दिन पहले से हीं मेरे देवर ननद सभी रंग लगाने के लिए उत्साहित थे कि भाभी को रंग लगाना है और कभी कभी छुप के लगा भी देते थे ।
होली के दिन सासु माँ बोली देखो बहू आज गाँव से सब लड़की अबीर-गुलाल खेलने शाम में आएगी सजधज कर तैयार हो जाना और घर में देवर ननद से बोल दी की तुमलोग भाभी के मुँह पर रंग मत लगाना सब कोई देखने आएगा सबने कहा ठीक है ...भाभी को मुहँ पर रंग नहीं लगाएँगे मैं भी नदान उन लोगों के बात पर विश्वास कर ली और निश्चिंत हो गई ।इधर देवर ननद का टीम में सात आठ लोग थे और इन लोगों का प्लान कुछ ऐसा था.....मैं अकेली किसी के हाँथ में हरा रंग किसी के हाँथ में लाल कोई गोबर कोई मिट्टी कोई बाल्टी में रंग और पानी ....बुरा न मानो होली है एक साथ अवाज लगाते मेरे रूम में आ गए ।तब तक मुझे याद आया आज लोग मुझे देखने आएगें और मैं साड़ी के पल्लू से मुँह ढ़क कर बैठ गई सबने मिलकर मुझे रंग लगाना शुरू कर दिया मिलजुलकर एकजुट होकर वे लोग मेरे चेहरे को आखिरकार रंगीन बना हीं दिया मिट्टी ,रंग ,गोबर से नहला रहे थे तब तक मेरी साँस फूलनें लगी और मैं फर्श पर गिर गई तब वे लोग छोड़ कर भाग गए और मैं पाँच मिनट तक फर्श पर लेटी रही फिर धीरे से उठी तो गोबर मिट्टी के गंध से उल्टी होने लगी और मेरी तबीयत खराब हो गई शाम में कौन आया और कौन गया मुझे नहीं पता था
मेरी पहली होली हर साल याद आती है ।
राजकांता राज
पटना (बिहार )
05 अप्रैल 2020 को महिला उत्थान दिवस पर आयोजित
कवयित्री सम्मेलन, फैंशन शो व सम्मान समारोह में आपको
सादर आमंत्रित करते हैं।
पत्रिका के साप्ताहिक आयोजनो में करें प्रतिभाग
शार्ट फिल्म व माडलिंग के इच्छुक सम्पर्क करें 7068990410
0 टिप्पणियाँ