मुहब्बत के पैगाम-नीता चतुर्वेदी

प्रेम फरवरी
तुम्हारे प्यार के सानिध्य में,
पलती रही मैँ,
बिना थके बिना रुके तिरे 
साथ चलती रही मैं।
ढूंढती रही खुशियां सदा 
तेरे ही आस- पास,
तेरे प्यार में बनती और 
संवरती रही मैं।
जीने की तमन्ना दिल में
पलपल बढ़ने लगी जब,
नजर में मुहब्बत के पैगाम 
पढ़ती रही मैं।
सुकून छीना भी तो क्या 
कातिल हवाओं मेरा,
मंदिर में एक दीये की तरह 
जलती रही मैं।
अधूरी ख्वाहिशों का गम भी 
सालता नहीं मुझे,
प्यार कि नदिया बनकर 
सदा ही छलकती रही मैं।



नीता चतुर्वेदी


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