मुक्ति - संतोष शान

हीने की हर छुट्टी को वह फिरोजाबाद से मथुरा रेलवे स्टेशन पर उतर कर काफी देर तक बैठ ना जाने क्या क्या सोचता  , बुदबुदाता‌ और फिर चल देता  किसी तांगे अथवा तिपहिया वाहन पर सवार अपने गांव।कभी-कभी स्टेशन पर बैठकर कुछ सोचते हुए दो चार आंसू भी बहा लेता था। सुनो जी (पत्नी हारी सी आवाज में बोली )खाद वाले लाला आए थे चार छः  खरी-खोटी सुनाकर गए हैं , मैंने थोड़ा समय मांगा  ! तो दो एक गाली भी दे कर गए हैं !!और बौहरे जी  .... वह तो धमका के ही गए हैं अगर अगले माह मय  सूद के पैसा ना लौट आया तो इकरारनामा को  बैनामें में  बदलने में जरा भी देरी नहीं करूंगा  । वह रुंवासी हो चली थी‌।
 "अब दो  गज भूमि बची है वह भी हाथ से चली गई तो  ...क्या करेंगे  !?कैसे करोगे जी.....।
उसने खीझते हुए कहा , कर भी क्या सकता हूं  ! परदेस में रहकर के सुबह से शाम तक निरे धुएं  में मर मर के तो कमा रहा हूं  !!अब तो कारखानों का भी हाल ऐसा है कि महीने में 15 दिन चालू तो 15 दिन  का पता नहीं ...अब परिवार पालूं या क़र्जा  दूं । अच्छा होता कर्जा ही ना लेता।
अरे कैसे ना लेते कर्जा  ! ( पत्नी भौंह चढ़ा कर  बोली )पहाड़ होती बेटी को क्या यूं ही बिठाए रखते घर में!!?
" अरे मर जाती  ..खप जाती! भाग जाती किसी के साथ!! कम से कम कर्ज से तो मुक्ति मिलती। ( वह मुंह पर हाथ रखते हुए बोला)
पत्नी तपाक से '''हां ...तब तुम्हारी नाक बहुत रह जाती ना  ...?? अरे तो अब नाक के रहने से यह कर्जा तो नहीं उतर रहा । वह झुंझलाते हुए बोला।
उतर तो जाता जी ( पत्नी उदासी लिए बोली ) जो फसल अच्छी होती ... लेकिन भगवान भी ना.....! ऊपर से खाद बीज और दवाई के पैसे  ..सूद और ज्यादा कपार‌  फारे रहा है। कुछ रुक कर वो बोली""" यों  कह रही हूं जी ! इतवार को कनुआ बीमार हो गया था सो पंडिताईन से पचास रुपया मांग कर लाई थी उन्हें तो कम से कम लौटा आऊं ।
ले .. भागवान यह पांच सौ रुपए हैं  आधा पेट कर करके बचाये है! चाहे अनाज भरीयो  .. या दवाई  लियो  तेरी मर्जी ।
पांच सौ रुपयों को पत्नी के आगे जमीन पर फेंकता  हुआ वह हारी सी आवाज में बोला।
एक हाथ से कनुआ को पकड़े और दूसरे हाथ से पैसों को उठाती वह फिर बोली।
" खाद वाले लाला और बौहरे जी से भी कुछ कह सुन तो आते जी ! वह फिर आ धमकेंगे नहीं तो।  
वह कुछ कहे इससे पहले ही बहुत जोर से उसे खांसी उठी  , कुछ देर खांसने के बाद हांफते हुए और थूक गटकते हुए वह बोला "जवाब मैं क्या दूं  ! चूड़ी जुड़ाई के धुंए से तो अब खुद का शरीर ही जवाब दे गया है ...।
दूसरे माह जब छुट्टी पर फिरोजाबाद से घर आने को वह स्टेशन पर टिकट खिड़की से टिकट खरीदने गया तो आस-पास कोई आपस में फुसफूसा रहा था ।"" बस .. वही कर्जा .....! ‌ वही रोना
उसे फिर खांसी आने लगी ।
आसपास के लोग उसे देखकर तरह-तरह के मुंह बनाने लगे। वह बिना टिकट लिए वापस प्लेटफॉर्म पर लौट आया और सीमेंट की कुर्सी पर बैठ गया  । उसकी आंखें नाम होती जा रही थी कभी वह लंबी सांस लेकर खुद को सामान्य करने की चेष्टा करता तो कभी आंखों की नमी छुपाने अंगोछे से चेहरा पोंछने लगता .. कभी बेचैनी से कुर्सी पर ही इधर से उधर घूम कर बैठ जाता  .. खांसी आने पर कभी मुंह दबा लेता तो कभी पेट पकड़कर जोर से आई खांसी को नियंत्रित करता । आसपास यात्री आ जा रहे थे।कोई उसे देखकर मुंह फेर लेता तो कोई अनदेखा कर आगे बढ़ जाता
। रात का धुंधलापन धीरे धीरे बढ़ने लगा तो प्लेटफार्म की लाइटों से पूरा स्टेशन जगमगा उठा , ट्रेन आने का अनाउंसमेंट हो चुका था सभी यात्री अपना अपना सामान उठाकर तैयार खड़े होने लगे। ट्रेन के स्टेशन पर रुकते ही यात्री भीड़ को चीरते धक्का-मुक्की करते उस पर सवार होने लगे। ट्रेन अपने गंतव्य की ओर जाने को तेजी पकड़ी ‌ही  थी कि एक परछाई तेजी से दौड़ती आई और रफ्तार पकड़ती ट्रेन के आगे कूद गई।
ट्रेन कुछ दूर जाकर रुक गई , हाहाकार मच  गया  शोर ही शोर  कौन था  ! कैसे गिरा!! कहां का होगा !?
सुबह फिरोजाबाद रेलवे स्टेशन की बड़ी लाइन से एक क्षत-विक्षत खून से लथपथ लाश को लावारिस करार दे पुलिस द्वारा पोस्टमार्टम के लिए ले जाई जा रही थी और उधर रात भर से रुकी ट्रेन दूसरी ओर यानी अपने गंतव्य की ओर दौड़ रही थी .... तेजी से।


 


संतोष शर्मा शान
मथुरा यूपी
05 अप्रैल 2020 को महिला उत्‍थान दिवस पर आयो‍जित
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