परिचर्चा पर नीता चतुर्वेदी

परिचर्चा आज के समय में हमारे टूटते परिवार कारण?...और निवारण।


परिवार की मजबूत नीव हो ये आज के समय में कम ही देखने को मिल रहा है परिवार की नींव अच्छे संस्कार,विचार,वातावरण, बड़े बुजुर्गो की छतृ छाया में पड़ती है परन्तु अब समय बदल गया है उपरोक्त। सभी बातें न होने से भी परिवारों का विघटन तेजी से हो रहा है कहीं न कहीं। हमने   भी अपना धैर्य खोया है आपस में संवाद हीनता बढ़ती जा रही है और संवेदनशीलता कम हो रही है  और परिवार टटूने की ओर अग्रसर हो रहें हैं पहले हम संयुक्त परिवार की छतृ छाया में रहते थे  वहां बड़ों की मर्यादा रहती थी एक दूसरे से  हमें सीखने को मिलता था पर अब जैसे जैसे। समय बदला, हमने अपनी आधुनिकता की चादर को बड़ा कर लिया । समय के साथ आगे निकलने के चक्कर में हर चीज को शाट कट में अपना लिया परिवार को भी शाट कट कर लिया और विचारों को भी।हम सभी की दुनिया छोटे से खिलौने मैं सिमट कर रह गई है क्योंकि उसमें हमें सारे प्रश्नों का जवाब मिल जाता है बच्चे हों या बड़े सभी उसके दीवाने हैं वह जितना अच्छा है इतना बुरा भी है यानी कि मोबाइल। इससे परिवारों में संवाद की कमी आई है कुछ हद तक बच्चों पर इसका ज्यादा असर हुआ है पहले जो बच्चे बड़े बुजुर्गों के पैर छूकर घर से निकलते थे वही बच्चे अब बाय मॉम बाय बाय डेड कहते हैं कहीं ना कहीं हमें भी समय के साथ बदलने में अच्छा लगता है समाज के लिए , नहीं तो समाज में हम भी हीन भावना से ग्रसित रहते। परंतु बदलाव इतना अधिक ना हो कि हम अपने संस्कारों को ही भूल जाएं। अपने आदर्शों को ही भूल जाएं अतः हमें अभी सचेत हो जाना चाहिए अपने बच्चों को बड़े बुजुर्गों का संघर्ष याद दिलाएं उन्होंने कैसे एक परिवार को बढ़ाया उन्हें किस्से कहानियां सुना कर संस्कारों से उचित विचारों से जीवंत रखें ताकि वो हमारे बुढ़ापे की लाठी बने और उनके बच्चे उनकी लाठी बने इस तरह पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार चलता रहेगा और परिवार विघटन की स्थिति नहीं आएगी अतः बच्चों को धर्म से भी जोड़ कर रखें।
जय श्री कृष्ण।🙏🏻🙏🏻🙂


 


नीता चतुर्वेदी विदिशा।


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