माँ !मेरी प्यारी माँ, मत आँसू बहा,
नहीं देखी जाती मुझसेअब ,तेरी यह दशा।
मैं नहीं भले ही सम्मुख तेरे,लेकिन तू नहीं अदृश्य मेरे लिए माँ,
हरपल दौड़ती रहती नज़र मेरी, पीछे -पीछे तेरे ही माँ।
जानती हूँ मैं माँ! तेरीअँखियों से नींद कहीं खो गई है माँ,
ज़िन्दा लाश बन,बस मेरी ही चिंता में तू घुल रही है।
लेकिन अब तो आज़ाद हूँ मैं माँ, नहीं खौफ़ यहाँ दरिन्दों का,
निर्भय हो उड़ती हूँ मैं,दिशा -दिशा परिंदों सा।
नहीं डर मुझे अब भूखे भेड़ियों का, क्योंकि अब तो शरीर नहीं,
बस न्याय के लिए भटकती- फिरती आत्मा हूँ मैं माँ।
नहीं अकेली माँ मैं, मुझसे भी नाज़ुक,छोटी बहनें हैं,
सङ्ग मेरे हर पल न्याय की आस लगाए प्रतीक्षा में।
नहीं दुःख अब अपने लिए,मुझे तड़पाता है सन्ताप तेरा माँ क्योंकि
मैं जानती हूँ माँ !तू तड़प रही है उन घावों को लिए सीने में,
तड़प रही थी जब तेरी बिटिया उन हैवानों के चंगुल में।
न जाने कैसी कोखों ने था उनको जन्म दिया,
ऐसा क्रूर,निर्मम,वहशी ख़ून था जिनकी रगों में भरा।
जिस्म जिन्होंने मेरा इतनी बेरहमी से नोच था,
फिर भी मन न भरा तो ,
लोहे की छड़ से आँतों को भी मेरी गोदा था।
उस स्याह रात में,मेरे क्रन्दन से,परिंदों की आत्मा भी तड़पी थी,
कितना तड़पी थी,चीखी ,चिल्लाई,दया की गुहार लगाई,
फिर भी हैवानों को मुझ पर तनिक न दया आई थी।
ऐसे हैवानों के लिए तू केवल फाँसी का फन्दा माँग रही माँ!
फाँसी है कितनी आसानमौत !मात्र चन्द लम्हों का ही तो है ख़ौफ़!
नहीं माँ!मत माँग तू इतनी आसान सज़ा,
फाँसी चढ़ते ही इनके,
सब भूल जाएँगे और कुछ ही दिनों में,
दूसरे हैवान किसी मासूम को फिर रौंद जाएँगे।
अंग-भंग है सही सज़ा इनकी,तू गुहार लगा माँ!
ज़िन्दा रह तडपेंगे जब ये बिन हाथ -पैर के,
अपनी करनी पर पछताएँगे, इनकी दहशत भरी ज़िंदगी देख,
दूसरे हैवानों की हवस मर जाएगी , डर से वे थर्राएँगे।
देख इनकी तड़प ,मौत भी इनसे दूर भागेगी
आने वाली पीढ़ी में फिर न कभी ऐसी हैवानियत जागेगी।
कैसे लोग हैं वे जो कहते हैं,
ऐसी सज़ा भारत जैसे देश में असम्भव है,
पूछो माँ उनसे!
तो क्या ऐसी हैवानियत ऐसे देश में सम्भव है?
ज़रूरत आन पड़ी है माँ अब ,
बीमार न्यायालय में हो जल्द सुधार,
अन्यथा ले क़ानून हाथ में,माँ को ही उठानी होगी तलवार।
ममता -करुणा भरे दिल पर रख पत्थर,
करना ही होगा माँ तुम्हें हैवानों का संहार।
हाँ माँ! तुम्हें ही करना होगा इन दरिंदों का संहार।
माँ के दुःख को देख तड़पती बेटी की आत्मा की
पुकार के साथ
माधुरी भट्ट
समाज सेवी,शिक्षिका
पटना,बिहार।
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