होली विशेष -
फागुन अलबेला छायो री गुइयाँ
कान्हा बिना मन मानत नईयाँ
प्रीत का संदेसा लाये री होरी
मनवा में महके ,अमवा की बौरी
रंग अबीर भरी पिचकारी
पुरवा ने रंग दी धरती सारी
कासे करूँ मन प्रीत की बतियाँ
कान्हा बिना मन मानत नइयां
चंचल अँखियाँ बस गयीं मन मा
अंगारे सा टेसू दहके बन मा
इतर सी महके उजली रतियाँ
रास करे तारों संग जो चन्दरमा
जरे मन को और जलाये चंदनिया
कान्हा बिना मन मानत नइयां
राधा नाचे दे दे ताल
होली पे सखी होली में
कान्हा के रंग में निहाल -२
होरी पे सखी होरी पे
बौरा गयी जैसे सारी नगरिया
झूमे पवन जैसे कोई बावरिया
अम्बर से बरसे गुलाल -२
होरी पे सखी होरी पे
कुहू कुहू करे कारी कोयलिया
जियरा पे मारे जैसे कटरिया
बौराई अमवा की डाल -२
होरी पे सखी होरी पे
रंग दे मोहे ऐसे सांवरिया ,
उतरे न रंग फिर सारी उमरिया
रखियो न मन में मलाल --२
होरी पे सखी होरी पे
कहे को रोके मोरी डगरिया
मैं हूँ बिरज की बांके गुजरिया
लाज राख्यो नंदलाल --२
होरी पे सखी होरी पे
कान्हा की ऐसी बाजे मुरलिया
तोड़ के बंधन बाजे पायलिया
नाचें सभी ग्वाल बाल
अरे उर में बसे नंदलाल
होरी पे सखी होरी पे
ज्योति किरण सिन्हा
लखनऊ
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