प्रेम फरवरी
कभी दिल से दिल भी जुदा तब कहाँ था
कि मज़हब का कोई ख़ुदा तब कहाँ था
क़रीब आ गए चल के हम ख़ुद से ख़ुद के
बताए हमें फ़ायदा तब कहाँ था
निगाहों से पीते थे हम जाम-ए उल्फ़त
न साक़ी थी औ' मैकदा तब कहाँ था
चले राह में हम अकेले अकेले
बताए हमें क़ायदा तब कहाँ था
कहे आज सबसे ये पूनम अब बेशक़
मुहब्बत में इजहारे-पर्दा कहाँ था
**पूनम सिन्हा श्रेयसी**
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