पूर्णिमा की रात

पाती प्रेम की संख्या-8


प्रियवर मेरे शाह 
मधूर मिलन भरा प्यार जब जब सूरज की रौशनी हमारे तिमिर कमरे के दरवाजे एवं खिड़कियों से आती है । ऐसा लगता की हम दोनों एक दूसरे की अहमियत और प्रतिष्ठा को कायम रखने के लिये अपने प्रेम को आजीवन बरकरार रखकर एक दूसरे के नूर और मर्गदर्शन बने रहेंगे ।
आज शरद पूर्णिमा की रात्रि में जब चावल की खीर को चन्द्रमा की बिखेरती चाँदनी और ओस की बुंदे को पाने के लिये छत पर रखने गयी, तो ऐसा लगा कि मैं क्षुब्द सी खड़ी और तुम मुझे अपने आगोश में भरने की प्रतीक्षा में खड़े हो। यही सोच रहे हो की कब मेरी रुपा मेरी बांहों में आ जाये और मैं उसे अपने प्यार में इस तरह भींगो दूँ कि वो कभी सूख न पाये। आज यह सोच कर मुझे ऐसा लगता काश! तुम मुझे अपने प्यार का एहसास मुझे उस दिन बता दिया होता तो आज मैं तुम्हारी होती ।लेकिन छोड़ो प्यार की परीक्षा किसी भी रुप में दी जाती है ।
भले ही इस जीवन में एक दूसरे के न हो सकें । हम अपने प्रेम को दिवा रात्रि की तरह अमर रखेंगे, क्योंकि सच्चे प्रेमी और प्रेमिका वही होते हैं ,जो एक दूसरे से नहीं मिलने पर या एक दूसरे के नहीं होने पर भी एक दूसरे के लिये जीते हैं वो प्रेम की हत्या नहीं  करते । प्रेम को अमर रखने के लिये किसी प्रकृति से उदाहरण जब हम लेते हैं,तो ऐसा मह्सूस होता है ,कि  तुम यही कहीं हमारे पास हो ।अब मै अपने प्रेम की लेखनी को विराम देना चाहूँगी ।तुम हमेशा सुखी स्वस्थ रहो ।जब भी मेरी याद तुम्हें सताये मेरे नाम से एक पौधे को रोप कर मुझे जीवित रखने की कोशिश करना । सभी को मेरा प्यार  मिठास भरा फिर से तुम्हें प्यार ।
                               तुम्हारी नूर रुपा।
 


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