पाती प्रेम की
30 मई 1973 की रात सिर्फ सुहागरात नहीं मेरे जीवन की एक आदर्श एवं अविस्मरणीय रात थी , जब हमारे प्रेम का पवित्र और शालीन ढंग से शुभारंभ हुआ|
रात लगभग 11:30 पर मुझे कमरे में बिठा दिया गया कई तरह के विचारों में मन डूबा हुआ था हालांकि विवाह पूर्व पत्रों के माध्यम से एक दूसरे को समझने का प्रयास हुआ था फिर भी मेरा मन शांत नहीं था तभी सीढ़ियों पर आहट सुनाई दी ,मेरी धड़कनें तीव्र हो उठी| जब दरवाजा खुला तब मेरे हाथ पैर कांप उठे |
कुछ पल शांति रही, यह होले से आकर सेज के समीप खड़े हो गए |मैं घुटनों में सिर दिए बैठी रही तभी उन्होंने मौन तोड़ा "यदि आप हमें आदेश करें तो प्रेम का हम श्री गणेश करें "इस बोल ने मेरे ह्रदय की बढ़ती हुई धड़कनों पर जैसे अमृत वर्षण कर दिया |मैंने सहज ही लजा कर सिर उठाया तो देखा अत्यंत प्यार- भरी आंखों से ये मुझे निहार रहे थे ,मुस्कुरा रहे थे मेरा डर कुछ कम हुआ |बरबस में भी मुस्कुरा उठी |यह मेरे पास बैठ गए फिर मुझे उस नये जीवन का प्रथम उपहार दिया |
यह उपहार अन्य उपहारों से भिन्नता था इन्होंने नोटों की एक गड्डी मेरे हाथ पर रखते हुए कहा कि यह रुपए अपने लिए नहीं वरन जरूरतमंदों को दान कर देंगे एक दूसरे के लिए तो जीवन भर ही लेना देना है|
मैं कृतकृत्य हो गई यह सब मेरी कल्पना से परे था|
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