प्रेम...इश्क.... मुहब्बत, ईश्वर का सर्वप्रिय स्वरूप है... यह एक पवित्र अहसास है.... जिसमें जीवन के रूपांतरण की अलौकिक क्षमता है....सृजन का खूबसूरत आह्लाद है....प्रेम उस निरन्तर गतिशील सरिता की भाँति है.... जिसके प्रवाह में छोटी छोटी नदियों... नालों का जल भी बेहतरीन सृजन का आधार बन जाता है... जब जब हृदय में प्रेम की सरिता घटित होती है... चमत्कारिक सौन्दर्य उत्पन्न होता है....हृदय का ....अनाहत का... तो विस्तार होता ही है साथ साथ इस खूबसूरत अहसास की रश्मियों से उपजा आनंद हमारे मन के समग्र मैल को भी धो देता है.... आत्मा के बाहर पड़े जन्मजन्मान्तरों के आवरणों को नष्ट कर देता है.... दृष्टि में पवित्रता और मस्तिष्क में सहजता एवं सहजता प्रवाहित होने लगती है....ब्रह्मानन्द सहोदर आनंद का अविरल प्रवाह हमारी रूह के कतरे कतरे को महकाने लगता है.... अस्तित्व में असीम शांति व्याप्त हो जाती है.... प्रेमपूर्ण व्यक्ति के सानिध्य में मनुष्य... पशु-पक्षी और समग्र स्थावर..जड़्गमात्मक जगत् का कण कण असीम शांति महसूस करने लगता है....जीवन के समग्र रूपांतरण की शक्ति सिर्फ इसी अहसास में है...
प्रेम हमें समग्र... धारणाओं... मान्यताओं... एवं बन्धनों से मुक्त कर देता है.... हमारा अस्तित्व विराट हो जाता है.... यह सृष्टि ईश्वर के प्रेम का पर्याय है....दुनिया में यदि संतुलन स्थापित करना है तो हमें प्रेम पूर्ण होना होगा.... प्रेम के वास्तविक स्वरूप को अपने भीतर घटित करना होगा... वह प्रेम ही था जिसके वशीभूत होकर मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने भिलनी के जूठे बेर खाये और उसे मुक्ति प्रदान की...लक्ष्मण के द्वारा त्यागे बेर उनके लिए संजीवनी बन गये....प्रेम नामक अहसास में निर्माण की अद्भुत क्षमता है....कवि के हृदय में जब प्रेम जागृत होता है तो एक खूबसूरत काव्य का सृजन होता है.... लेखक सुन्दर कहानी का सृजक बन जाता है....मूर्तिकार का प्रेम दिव्य मूर्तियों का सृजन करता है...
गुरु का प्रेम अपनी दृष्टि देकर एक कोयले सदृश अयोग्य शिष्य को भी तराशे हुए बहुमूल्य हीरे में परिवर्तित कर देता है.... रामकृष्ण परम् हंस जी के प्रेम ने स्वामी विवेकानंद को पैदा किया और स्वामी विवेकानंद जी के प्रेम ने भगिनी निवेदिता जैसी शिष्या को जन्म दिया....प्रेम की ही सामर्थ्य से महात्मा बुद्ध जी खूँखार डाकू अंगुलिमाल का हृदय परिवर्तन कर पाये.....
बस प्रेम करना आना चाहिए ....यह भी एक शाश्वत् सत्य है कि प्रेम करना ईश्वर या गुरुकृपा के बिना हम सीख ही नहीं सकते.....
अभी हम प्रेम की सही परिभाषा भी नहीं जानते हैं.... पसंद और प्रेम में जमीन आसमान का अन्तर है.... पसंद में आधिपत्य होता है... बन्धन होता है... जबकि प्रेम हर प्रकार से स्वतंत्र और मुक्त कर देता है.....
डाॅ0 आशा तिवारी
शार्टफिल्म, माडलिंग व फोटोशूट, फैशन शो के लिए
इच्छुक महिलाएं 7068990410 पर मैसेज करें
आगामी लेख/कविता/कहानी के लिए विषय - होली
0 टिप्पणियाँ